बुधवार, 9 दिसंबर 2015

साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले



** साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले **
''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
मया पीरा ल जान ले संगी
बोली-भाखा ल पहिचान ले
छत्तीसगढ़ी हे महतारी-भाखा
बचकानी के दिन बीचार ले
गाँव गलि के चिखला माटी
पैरा म सब खेलन उलानबाटी
छू-छुवाउल गिल्ली-डनडा
अउ खेलन संगे लुका-छिपी
मया पीरा के भाखा सोरिया ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
/
अड़बड़ खाए अंगाकर रोटी
चिला ठेठरी अइरसा खुरमी
इडली डोसा के चक्कर परके
फरा अइरसा ल भूला डारे
चूल्हा गोरसी के आगी छोड़के
सुखसूबीधा के पागा बांधडारे
छत्तीसगढ़ी खटिया ल टोर
हिनदी ल पलंग बना डारे
मया पीरा के भाखा सोरिया ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
/
काटागड़थे त दाई गोहराथन
छत्तीसगढ़ी म आसू गिराथन
सपनाघलो ओही म सपनाथन
दूख-दरद के गोठ बतियाथन
बरा सोहारी ओही म मानथन
पंडवानी करमा पंथी गाथन
नाचा ददरिया म दिन पहाथन
हिनदी ल महतारी कइसे मानले
मया पीरा के भाखा सोरिया ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
/
मया पीरा ल जान ले संगी
बोली-भाखा ल पहिचान ले
छत्तीसगढ़ी हे महतारी-भाखा
बचकानी के दिन बीचार ले
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......
साहेब छत्तीसगढ़ी गोठिया ले.......


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
''''''

शनिवार, 5 दिसंबर 2015

****** पागा ****** दोहा

# पागा(मान)/ पगड़ी # दोहा
"""""""""""""''''"""""""""""""""""""""
 छत्तीसगढ़िया 'पागा', रख ग बने पोटार।
पागा गिरही जेन दिन,जाहि इमान बजार।।
-
पईसा रुपिया सूध म, भागत हे सनसार।
इमान कइसे बिसाबे, रुपिया हे भरमार।।
-
सूत सूत म बसे धरे, जीनगी के कमाय।
पागा खूलत देर हे, झटकुन ओहा जाय।।
-
सरपंच के पागा गए, गाँव नाके कटाय।
मनखे ले गलती होए, परवार दूख पाय।।
-
तीन-पाँच छोड़ मितान, ईमान रख कमाय।
बने बने के सबे हे, नइतो सब दुरिहाय।।
-
रुपिया-मान जेन धरे, ओही मनुस कहाय।
जोर सकेल दुनो ल तय, पड़ाइ सरल उपाय।।
-
मेहनत करले बेटा, पड़ाइ के दिन आय।
बोचकही बेरा तोर, फेर पाछु पछताय।।


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

बुधवार, 2 दिसंबर 2015

**चला रे संगी**


चला रे संगी चला रे साथी 
घरोघर बहरी निकालबो रे
गाँव गलि ल सुवक्छ बहारके
छत्तीसगढ़ ल महकाबो रे
महतारी के ओनहा चिखलागे
खचवा डबरा ल पाटबो रे
जूरमिल सुवक्छ्ता गीत गाबो रे
चला रे संगी ....................

जोंगईया सबो करईया हे कोन
नेता बस बहरी धरईया रे
अधिकारी पाछू चलईया संगी
मिलजूल फोटू खिचवईया रे
आवत जावत देखावा करथे
कोनो नई हावय करईया रे
अपन गलि-घर खूद जतनबो रे
चला रे संगी .......................

हमला हे रहना गाँव-शहर म
त हमी ल हावय सजाना रे
आवा निकला घरघर ले संगी
सफाई अभयान ढोल बजावा रे
सबो जघा ल सुघ्घर चमकाके
छत्तीसगढ़ ल सरग बनाबो रे
सुवक्छता नारा मन म बसाबो रे
चला रे संगी ...........................

कचरा—कुबुध्दी ल टमरके-धरके
सड़क गलि-समाज ले निकालबो रे
मन-बीचार म बईठे दवेस जलन ल
निकालके सबझन फेकबो रे
जाति-पाति भेद राक्छस ल मारके
संगेसंग रहिबो जीबो-मरबो रे
सरग जईसन छत्तीसगगढ़ बसाबो रे
चला रे संगी ...............................

चला रे संगी चला रे साथी 
घरोघर बहरी निकालबो रे
गाँव गलि ल सुवक्छ बहारके
छत्तीसगढ़ ल महकाबो रे


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

सोमवार, 30 नवंबर 2015

॥॥ ॥ सुवच्छता के बीसय म॥॥॥॥ DOHA

**छत्तीसगढ़ के पागा**


घर के कुड़ा सकेल के , घुरवा ले के डार।
खातू बनही काम के, नई लगही उधार।।
जेबीक खातू छिच के, खेत ल बने सवार।
कीटनासक ल छोड़के , घरके दार बघार।।
जग म कचरा बिखरे हे, बनजर होवत खार।
झोला धरे बजार जा, झिल्ली पन्नी बीदार।।
मन के कचरा ल पहली , फेर फेक आने ल।
झिल्ली कुड़ाकरकट लद्दी, धर सकेल अपने ल।।
खुद तही सुधर ग लहरी, सनसार सुधर जाय।
सबो जीव सुयम एक हे, नइ लगय कछु उपाय।।
जेन ल देख तेन भाइ, फोटु खिचाए ल आय।
जोंगय ओहा सबो ल, अपन नेता कहाय।।
बड़हत परदूसन धरा, दिनदिन पानि भगाय।
किसान रोवय किसानी, काला दूख बताय।।
आवा मिलके टुट पड़ा, कचरा राक्छस ताय।
झउहा झउहा फेकदे, खचवा तरि कुड़हाय।।
सुवक्छता बर परन करा, कचरा रख सकलाय।
कुड़ादान म रखबो जी, चाहे घुरवा जाय।।


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

गुरुवार, 19 नवंबर 2015

****आतंकवाद****

    ****आतंकवाद****
     ** ((दोहा))**
------------------------------
नकसली के बड़ेददा,  हवे आतंकवाद।
देसपरदेस ल जाके,  करदेथे बरबाद।।

आतंकवाद  पूजेरि, दाउद हवय फरार।
छोटा राजन आए अभि, पुलीस के दूवार।।

पाकिसतान पोसत हे, भारत झेलय मार।
नकसली  बनदुक बाटे,  करय ग अतियाचार।।

छत्तीसगढ़ महतारी ल, घेरे नकसलवाद।
नकसली करे काटमार, सिखत आतंकवाद।।

बीजापुर के कनिहा म, मचाथे ग उतपात।
कोनटा अउ कानकेर, रोवय नवाए माथ।।

अगोरा रहिच दाई ल,  सहीद होगे लाल ।
देस-माई बर परान,  देहीस बीन-काल ।।

कोख ह उजरगे दाई, घर सून्ना होगे ग।
आखी ह अब सूखागे, आसु सबो ढरगे ग।।

खून छलकत माटि म, जानेकब रुकही ग।
महतारी बर बली अब, कतेक लाल दिही ग।।

आतंकवाद जरि बिछे, भारत माटि म आए।
राकछस इहि नवा जूग, कोन संहार कराए।।
--------;;---------------;;---------
मिलन मलरिहा 
मल्हार बिलासपुर

*हाइकू* (वर्णिक छन्द)------------***फेसबुकिया वाटसफिया चोर***


फेसबुकिया 
वाटसफिया चोर
*हाइकू* मोर
--------------
--------------
चोर हे चोर
भाजी साग जइसे
तरी म झोर ।          (1)

चटके हे जी
साहित्य के कराही
खो जर जाही ।       (2)

हकाल ओला
हमर बारी कोला
भरत हे झोला ।      (3)

काम हमर
अपन नाव लिखे
कवि तै दिखे ।       (4)

आने के बारी
टोरे भाटा मुरई
लेगत जाई ।          (5)

देखहू तोला
फेर काली आबे रे
लुटहू झोला।         (6)

कापी पेस्ट ल
झीन कर तयहा
अभी चेत ज।        (7)

चोरी लेख म
का पाबे रे गियान
उहे रुक ज ।        (8)

तै पकड़ाबे
जेनदीन पगला
मान गवाबे।          (9)

नाक तै कटाबे
संगीसाथी छूटही
त रोबे गाबे।         (10)
--------;;---------
मिलन मलरिहा 
मल्हार बिलासपुर

गाड़ा रवन गवागीस


सोमवार, 16 नवंबर 2015

**गरीब बर का देवारी**


दिया बरत हे जगमक जगमक
फूटहा हे कोठी टूटहा हे दुवारी
लईका रोए छुरछुरी ला कहीके
महगाई म गरीब बर का देवारी

धनतेरस म खीर मिठाई घरघर
सूख्खा रोटी नई हावय हमरबर
बम फटाखा कहा पाबो संगवारी
महगाई म गरीब बर का देवारी

लछमी ल लछमीवाला ह बिसाथे
मातरानी सोन के कलस म आथे
माटी कलस म तेल अटागे भारी
महगाई म गरीब बर का देवारी

सुरकदीस मिरचा बुझागे बम
अनारदाना नईहे टीकली हे कम
खाए बर तेल नईए बड़ दूखभारी
महगाई म गरीब बर का देवारी

भात कम पेज हवय ग अड़बड़
पताल थोरहा मिरचा के कलबल
दिया भूतागे अब कहाके फुलवारी
महगाई म गरीब बर का देवारी

सबो घर दमकत हे अंगना बारी
लिपाय पोताय कहरय जी छुहारी
धान लुवाएबर बाचे नईहे बनिहारी
महगाई म गरीब बर का देवारी ।

मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

** दिया जलाए भरले का होही ? **


जखम म ककरो मलहम कभु लगाए नही
अंतस के पीरा ककरो तारे सवारे नही 
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?

दाई ददा ल बुढहतबेरा म घरले निकाले
दारु जूवा म पइसा खेती बारी ल बेच डारे
गरीब मनखे डोकरी-डोकरा ल ताना मारे
महतारी दूखियारी के पीरा कभु नइ जाने
देवारी रतिहा लछमी पूजापाठ ले का होही
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?

मनखे ल मनखे सही कभु तो तय नई जाने
डोकरा सियनहा के कहना ल नई तो माने
अपनेच सही दूसर के ईज्जत ल नई समझे
गिरे परे मनखे के दरद ल कभु नई पहिचाने
देखावा करे अउ गलती ल तोपे ले का होही
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?

रंग-रंगोली टीमीक टामक बर दीया जलाए
सतमारग परकास दिखईया दीया नई लाए
लछमी बम कटरिना छुरछुरी मुरगा मनभाए
छानही म चढ़के राकेट म आगी तय धराए
सत के रद्दा रेंग ग कोदू जीनगी सवर जाही
घर-देहरी म दिया जलाए भरले का होही ?
-
-
मिलन मलरिहा

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

***छत्तीसगढ़ी लदकागे रे***



सेमी के नार म जईसे मैनी लुकसी छागे रे
पररजिहा भाखा तरी छत्तीसगढ़ी लदकागे रे

तीवरा के भाजी तैहा होगेच ओमन होगे बटुरा
महतारी भाखा होगे बैरी उड़िया कइसे हितवा 
छत्तीसगढ़ी बिछागे बोलइया घलो लजावतहे रे
हमरे खेत के धान खाके उड़िया-सड़वा मोटागे रे
गहुँ बर पलोएव पानी बन-दूबी हर बने पोठागे रे
पररजिहा भाखा........................................

भाखा हे चिनहारी संगी इही हवय हमर ईमान 
माटी हवय दाई के अचरा हरियर हमर पहचान 
तुमा तरोइ छानही चढ़के झिन होरा ल भूँजबे
जरी नार काट खाही त ओहिमेर भँवाके गिरबे 
अपन भाखा जरी काटवाके तुमा कस पटकागे रे
पररजिहा भाखा........................................

भाटा बारी म मुसवा हर बीला खोदत हे
पररजिहा गोठ बोली दीयार सही छावत हे
छत्तीसगढ़ी बीही बारी म अमरबेल घपटत हे
जाम-बीही ल बिहारी बेन्दरा रउन्दत टोरत हे
हमरे बारी खेत म अपन भाखा भाजी जगागे रे
पररजिहा भाखा........................................

भाखा के बल पाके उड़िया राईगढ़ ल चपेलही
बिहारी बेन्दरा कुद नाचके घर म कबजा करही
महतारी भाखा तोर भुलवारके अपन ल चलाही
छत्तीसगढ़ी हे हमर चिनहारी झिन एला भूलाबे रे
संसकिरति हमर पररजिहा सेतिर कती गवागे रे
पररजिहा भाखा........................................
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

नव दिनबर आए दाई

नव दिनबर आए दाई
मनदिर तोर सजगे ओ
नवरात्री मल्हार रतनपुरे
ढोल नंगाड़ा बजगे ओ
पहली दिन आए शैलपुत्री
हिमालय के बेटी कहाए ओ
दूसरेच दिन आए ब्रह्मचारनी
तपस्या के मान बताए ओ
नव दिनबर......................

तीसरदिन दाई चन्द्रघनटा
दसो हाथ आशिष देहे ओ
चौथा दिन हे कुसमान्डा
अलख ब्रह्मान्ड बसाए ओ
नव दिनबर....................

पाचवेदिन दाई स्कंदमाता
जीवजनतु ल आसीस देहे ओ
छठे हे दिन कव्यायनी दाई
बैधनाथ म बइठे बिराजे ओ
नव दिनबर......................

सातवे दिन हे कालरातरी
तय काली खप्परवाली ओ
आठवेदिन म दाई महागौरी
शिव-पारवती जगदम्बा ओ
नव दिनबर......................

सिद्धीदातरी नवेदिन ए दाई
नंदा परवत वासीनी दाई
अधानारीपुरुष तोर रुप ओ
मलरिहा खड़े आसीस बर
डिड़ीनदाई दरसन दे दे ओ
नव दिनबर आए दाई
मनदिर तोर सजगे ओ
नवरात्री मल्हार रतनपुरे
ढोल नंगाड़ा बजगे ओ।।


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

बुधवार, 2 सितंबर 2015

'' पढाई ले मन जोड़ ले "

एती तेती ल छोड़के पढाई ले मन जोड़ ले 
बेरा खसलत हे गियान ल धर सकेल ले 
-
दिन अड़बह हे गिंजरे के एला फेर नईपाबे
अघुवाजाही संगी-साथी तय पाछु रइजाबे
संगी-जहुरिया ल देखके ओदिन बड़ पछताबे 
नई बिगड़े हे काही सियनहा के भाखा मान ले.....
-
मोबाईल ल पटकदे टीबीसीडी के तार झटक दे
लफँगा संग झिन घुमफिर सीटबाजी ल छोड़ दे 
बहलइया हे पारा बस्ती गून अड़बड़ हे जान रे
तोर हाथ खुद करम लिखके जीनगी ल सवार ले....
-
बने चेत धरके पढ़लिख हमरो मान सवार तय
गरीब किसनहा के तै लईका बने रद्दा गढ़ तय
गियान के बानी करु हे बेटा गुरतुरबानी टारदे
चाउर तरी खुसरे हे गोटी बने पछीन निमार ले....
-
पहली दूखके रद्दा रेंगबे त पाछु सुख ल पाबे रे
बीन मेहनत ए दूनिया म कोनो कुछू नई पाय रे
हमर बेरा ह झरगे बेटा तोरबर काही नइ जोरेन
पढ़ाई लिखाई पुन्जी होथे इही ल बने जोहार ले...
-
एती तेती ल छोड़के पढाई ले मन जोड़ ले 
बेरा खसलत हे गियान ल धर सकेल ले ।।
मिलन मलरिहा
नगर पंचायत मल्हार 
बिलासपुर छ.ग.

बुधवार, 19 अगस्त 2015

कलाम जइसे बन जाबे ग



**************************

जनम ल पाके जग म मनखे
कोन रद्दा ल धरबे ग
कोन जानही का तय बनबे
का करबे का जपबे ग
अपन करइया सबोझन होथे
दूसर ल मलहम लगाबे ग
देशसेवा म तन-मन बिछोके
कलाम जइसे बन जाबे ग
-
ए जीनगी जुग हे ठग्गू जग्गू
चकाचक म झिन भुलाबे ग
रुपीया पइसा सकेल के तय
कतेक का ले डारबे ग
आनीबानी पहिरके सवांगा
कोन ल कतेक देखाबे ग
छोड़ के तय देखावा ल संगी
कलाम जइसे बन जाबे ग
-
बन जाबे कभु तय नेता
कुरसी झन जमाबे ग
माटी कोईला बेच के तैहा
संदूक झिन भरलेबे ग
गरीब ल लड़हार के कभु
अचरा ल झन झपटबे ग
मनखे मनखे के दरद हरैया
कलाम जइसे बन जाबे ग



मिलन मलरिहा

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

*********रूख लगावा*जंगल बचावा********

**********************************
-
उठ जा किसान जाग जा कब तोर निंदवा भागही
आसो पानी टिपीक टापक हे थरहा कब जागही

खेती म जूवा खेले छत्तीसगढीहा चिनता बड़ भारी
बूता करइया नइ हे कोनो ठलहा बइठे अरई तुतारी
रूख कटाई म मउसम रिसागे ओला अब मनावा
आवा सब्बो जूरमील घरोघर एकेक रुख लगावा
ओखर छांव तरी दूखके बेरा झटकुन बुलक जाही
बला बला के ओही ह संगी करीया बादर ल लाही
उठ जा किसान .............................................

मसीनवा जूग हे संगी उदयोग धनधा होगे अपार
जंगलझाड़ी झरगे दिनदिन ढुड़गा होवत सनसार
झन काटव रूखराई ल जीवजनतु के सूनव गोहार
अपन बनौकी बर बीगाड़व झन दूसर के घरदुवार
चारदिनीया चंदेनी खातिर हरियर रुख ल झनमार
चिराई जीव ल तरसाके जीनगी सुख कइसे आही 
उठ जा किसान .............................................

फुरहुर फुरहुर पवन नदागे जाने कहा ले धुर्रा आगे
नदिया नरवा कुआँ तलाव तरिया ले पानी अटागे
अभी असाढ सावन भादो म कउख्खन गरमी आगे
जंगल के मितान पानी हे संगी ओला फेर सजावा
आवा सब्बो जूरमील घरोघर एकेक रुख लगावा
ओही ह संगी,हमर जीनगी खार मानसुन ल बलाही
उठ जा किसान .............................................
*************************************


मिलन मलरिहा

रविवार, 2 अगस्त 2015

पुसतक ले पियार कर


󾕆󾕆󾕆-------------󾕆󾕆󾕆
उठ जाग भीनसारे
पुसतक खोल तय प्यारे
कागज कलम ले पियार कर
गियान ल खोज टमर धर
माथा म लेके बीचारकर
बुद्धी दवाई नोहे संगी
जेला कोइ बरदान देही
बने चेत जगा धियानकर
मटरगस्ती ल छोडके बाबू
पुसतक ले पियार कर
-
बने पढबे बने जघा ल पाबे
बेरा ह निकलत हे संगी
पानी बोहावत हे सकेलडर
सनसार म मिलही उचकइया
अपनरद्दा म कलेचुप आएकर
चकाचउन्ध हे पारा मोहल्ला
फोनवा ल झीनधर
सिटबाजी ल छोड तय
पुसतक ले पियार कर
-
हमर हिजगा झीनकर
हमन रोज वाट्सेप चलाबो
फेसबुक ल धरे रहिबो
हमर समय निकल गे
अपनखुद बर रद्दा गढ़
भाईजान बाहुबली ल छोड़
टीबी सिनेमा ल बाद म 
धरबे आउ रपोटबे
तोर बेलेनटोइन अभी पाछु कर
एतिओती ल छोड़के
पुसतक ले पियार कर
............................


मिलन मलरिहा

सोमवार, 27 जुलाई 2015

**कहाँ चले भईया**

**कहाँ चले भईया**


बइला भइसा चरइया खुमरी पागा के बंधइया
ए जवइया तय गांव छोड़के कहा चले भईया

दुःख पीरा के संगी, अपन गांव के करीयामाटी
एला छोड़ तय नई पावच कोनो महेल अटारी 
अपन गाँव म जीबो मरबो बर छईहा म बइठबो
जुरमीर जम्मो सकलाके किस्सा कहानी सुनबो
तय तरिया के नहइया गुल्ली डंडा के खेलइया
नांगर जोतइया आमा चटनी बसी के खवइया
ए जवइया ...........................................

अगोरा म जम्मो संगी साथी रोज नाव लेही
तोर सुध म गरुवा बछरु के आसू ढर जाही
गाँव  के चिराई चुरगुन तको तोला गोहराही
बहरा खार के माटी रइह रइह तोला बलाही
बरदी के सकलइया बास बसरी के बजइया
तय धोती के पहनइया घीवतेल के चुपरइया
ए जवइया ..............................................

करपा बीड़ा सकलइया अउ डोरी के बनइया
गाड़ा भइसा फंदइया तय बेलन के मिसइया
ठुठी बीड़ी के पियइया डोकरा संग बइठइया
अपन गाँवके भाखा पीपरचौरा कहुं नइ पावच
हासी ठीठोली करके डोकरीमन ल चुलकावच
बीही बर बमरी छाव जीनगी के डोंगा पेलइया
ए जवइया ..............................................

जिहा जाबे लहुट आइबे अपन गांव हे बढ़िया 
चारदिनिया सुहाही तोला सहर चकोरी भुइया 
गरमी धुर्रा नाली मच्छर रहिथे घोलहा पताल
सुग्घर चमके दिकथे उहा जम्मो के घर दुवार 
बाहीर ले सरग तरी ले नरक बीमारी हे अपार 
तय मेड़ के चलइया आउ खेत-खार के रेंगइया 
ए जवइया ................................................
-
-
मिलन मलरिहा
छत्तीसगढीहा

मंगलवार, 21 जुलाई 2015

****परमाण पत्र*****

परमाण पत्र पाके कइसे तै करबे
जाने सीखे रहिबे तभेच आघु बड़बे
-
        इसकुल कालेज कमाई के हे अड्डा
        बेचावत हे डिगरी फेर का के चिनता
        बीए एमबीए ह ठट्ठा मजाक बनगे
        कमपुटर के घलो पानठेला म बिकथे
        बारवीं निकलना हावे ओपन म भरदे
        माथा म चटकाके गली गली गिन्दरबे......
परमाण पत्र पाके कइसे तै करबे
जाने सीखे रहिबे तभेच आघु बड़बे
-
        नकली ह आघु बड़गे असली पिछवागे
        बुद्धी के देवइया आज पइसा म मतागे
        राहेरदार माड़गे संगी अकरीदार बेचागे
        गली गली ठलहा खड़े, बेरोजगारी आगे
        नौकरी खोजत खोजत जिनगी ह पहागे
        अउ कतेका डिगरी धरबे  तय सकेलबे....
परमाण पत्र पाके कइसे तै करबे
जाने सीखे रहिबे तभेच आघु बड़बे
-
         रापा गैती कुदारी  हसीया के चलइया
         कबले  इनजीनीअर कागज पाए भइया
         एक महीना म  पाॅजीडीसीए  घलो पाए
         पानठेला म बइठके सबला पान खवाए
         दूसरेच महिना म बीएड बीना कहु जाए
         एतिओति बाराकोति करके का करडारबे....
परमाण पत्र  पाके  कइसे तै करबे
जाने सीखे रहिबे तभेच आघु बड़बे
-
          पड़हाई -लिखाई ल  हासी  मजाक बनाके
          साटकट  के रद्दा म चलके  कतेक  देखाबे
          आमा गोही धरके गियान गुदा कइसे खाबे
          परवर अउ  कुँदरु  के भेद  अंतस म धरके
          छोड़के बेइमानी  बुता काम ल बने सीख ले
          सतरद्दा म चलके एकदिन मनजिल ल पाबे.....
परमाण पत्र  पाके कइसे  तै करबे
जाने सीखे रहिबे तभेच आघु बड़बे
-
-
-
-
मिलन मलरिहा
छत्तीसगढीहा
9098889904

बुधवार, 15 जुलाई 2015

*** किसान के दुख ***

आ गे हे अषाढ़ ह संगी 
सावन ह तिरयावत हे 
पानी ल बला बला  के 
बेंगचा ह चिल्लावत हे 

चार दिन के टिपिक टापक 
खेत म नई माड़हत हे 
हमर तो मरना होगे संगी 
धान ह जर जावत हे 
तभो ले पानी काबर आतिच
किसान ल रोवावत हे 
आ गे हे अषाढ़ ………………

किसान के दुख हे भईया
खेत ह सुखावत हे 
धान पान नई होही त
कइसे जीनगी चलाबो ग 
उठ बिहिनीहा सुध ह 
खेतच म चले जावत हे 
आ गे हे अषाढ़ ………………

सपना होगे पानी ह भाई
बादर ह दुरिहावत हे 
नांगर बइला घर बइठके
अकाल ल गोहरावत हे 
अषाढ़ बनगे चइत भईया
डबरा खचवा ल छोड़ 
जम्मो तारिया ह सुखावत हे 
आ गे हे अषाढ़ ………………

लगथे अकाल पड़गे भईया
लागा दिन दिन बाढ़त हे 
बिजहा बर लेहेव बाढ़ी
दुई कोरी कुरो के धान
छूटे बर छुटत हे परान
आजा बदरी मलार खार म 
जीवरा मोर रोवत हे 
किसान के दुख़ देख के 
खेती ले बिसवास उठत हे 
आ गे हे अषाढ़ ………………
/
/
/
/
/
मिलन मलरिहा


मंगलवार, 7 जुलाई 2015

****** बेटी *******


-
अपनो से जूदा होकर
नव परिवार सजाती है
वह बेटी ही तो है जहां मे
जगत को चलना सिखाती है
-
रुकी तो धरा नर्क है
चली तो यहाँ स्वर्ग है
बच्चे, बुढ़ो का है आधार
सेवा पर टीकी है संसार
सबकी सहती न अकड़ती
दुखो का भार उठाती है
वह बेटी ही तो है जहां में
जगत को चलना सिखाती है
-
वह रुठी तो जग मुरझाई
हंसी अगर सब हरियाई
सब मान उसी की दम पर
बेटो ने आज जो पायी है
जब ठुकराया इन बेटो ने
बुजूर्गो को सम्हालती आयी है
वह बेटी ही तो है जहां में
जगत को चलना सिखाती है
-
बेटो को जड़ मान लिया है
दिन दिन बेटो का चाह किया है
फिर भी अनचाही डालो में
इन बेटो की खेत बागो में
नन्ही कलि खिल जाती है
बिन खाद वह बढ़ आती है
वह बेटी ही तो है जहां में
जगत को चलना सिखाती है
-
मान, सबकी की शान वही
घर घर की पहचान वही
फिर क्यो, तोड़ मरोड़ देते
बागो की सुन्दर फूल वही
नीत न त्यागो बगीया से
सभी फूल सूख जायेगा
लगता वह दिन दूर नही
तीसरा युद्ध पनप आयेगा
-
समेटो बिखरती जा रही है
अमुल्य मूरझाती पुष्पडाल
सूने आंगन को चमकाती है
वह बेटी ही तो है जहां में
जगत को चलना सिखाती है
-
-
मिलन मलरिहा

शनिवार, 27 जून 2015

## चल नांगर बइला जोर ले ##


-
चल धरले नांगर संगे बइला जोर ले
बलावत हे तोला बहरा खेत के माटी
अरई तुतारी ल घलो जोर सकेल ले
मेड़ तरी कोचईपान म बइठे बेंगवा
रइह रइह तोला जपत गोहरावत हे ..
रिमझिम रिमझिम  पानी धुन म
आनीबानी सवनहा कीरा मटमटात हे
संगे पिटपिटी सपवा अड़बड़ निकले
डबरा के  चिखला तरी जोखवा बइठे
बइला भाईसा आयेके ओला अगोर हे..
घोंघी गेंगरुवा अउ केकरा के सोर हे
घूमर घूमर बादर गरजे पानी ह बरसे
छाता ल बने बीजहा संग धरजंगोर ले
चल धरले नांगर संगे बइला जोर ले.........
-
-
-
मिलन मलरिहा
छत्तीसगढ़िहा

*****क्यों कराये हमें आजाद ?*****


आजादी का वह ताम्रपत्र
शहीदो ने जो पाया
घीस गये वसुंधरा में
बस लोहा टीन बन पाया
क्यों किया तुमने यह
क्या खोया क्या पाया ?
यही पूछते है सभी फिसाद
रहने देते गुलाम हमें
क्यों कराये तुम हमें आजाद ?
-
कलयुगी ज्ञान देती ललकार
आजादी से बड़े सुचना का अधिकार
कैसे पके है आपके बाल ?
लाठी टेक क्यों लन्दन गए
बीना शस्त्र कैसे किये प्रहार
यही पूछते है सभी फिसाद
रहने देते गुलाम हमें
क्यों कराये तुम हमें आजाद ?
-
-
-
मिलन मलरिहा

बुधवार, 10 जून 2015

**दाई-ददा **

छोड़ के तै गुमान ल संगी
बन जा पिरीत जोड़इया ग
चारदिनिया हे जिनगी हमर
दाई ददा ल झिन भुलइहा ग
-
जाही त नइ पावच ओला
फेर गुन गुन के तै रोबे ग
ओही दाई के मया कोरा ल
कोनो जिनगी कइसे पाबे ग..
-
सौ जनम ल कोन ह देखे
पतियाए काकर भाखा ग
इही जिनगी  दुख  पीरा के
करले इहेच हे पुन पाप  ग..
-
ए जिनगी एकबार हे संगी
दाई ददा घलो एकबार हे ग
कइसे छुटबे तै मया के लागा
ए जिनगी ओखर उधार हे ग..
-
छोड़ के तै गुमान ल संगी
बन जा पिरीत जोड़इया ग
चारदिनिया हे जिनगी हमर
दाई ददा ल झिन भुलइहा ग
.
.
.
.मिलन मलरिहा

गुरुवार, 4 जून 2015

फिर तू एक गॉव बसाएगा

फिर तू एक गॉव बसाएगा
-
राहें निकलती है उस ओर
गॉव खेत के अंतिम छोर 
नीत आता सूरज गॉव से
वह  भी तो चला है जाता
शहरो की ओर ही भागता
अब जगह जगह है शहरी
सब जीव हो गए बहरी
थककर तू कुछ न पायेगा
नीव का इट गिर जायेगा
फिर तू एक गॉव बसाएगा
-
वे पंछी गाते गीत वहां की
जिसने सीखा यहाँ चलना
वह भी दिन दूर नहीं
तू रो रो कर पछतायेगा
जिस दिन जलती देह लेकर
तू मातृभूमि की छाव आयेगा
रगड़ रगड़ मिटटी में ये तन
तालाबों में डुबकी लगाएगा
एकदिन चकचौंध नकारकर
फिर तू एक गॉव बसाएगा....
-
बदलते परिवेष नवधरा 
धूप ही धूप से है भरा
तपती जलती वसुन्धरा
हरे-भरे दूब घास मिलेंगे
बागों में बस पुष्प खिलेंगे
नवराहे निर्माण सजाकर
गांव-खेतों से वृक्ष हटाकर
गगनचुम्बी मंजील गढ़कर
स्वमेव अनल दहलाएगा
शाँत मधुबन बरगद छाँव
मथ गुँजता चिखता पुकारेगा
फुल भँवरो की धुनश्रोता
फिर तू एक गॉव बसाएगा....
-
-
-मिलन मलरिहा



शुक्रवार, 29 मई 2015

मोर ददा के बीमा

मुसकिल करदिच जीना
वह रे मोर ददा के बीमा
मरइया मर के चले जाथे
लइका मन बड़ दुःख पाथे
बीमा करइया ल दुःख के
कइसे नई होयव चिनहारी
ओखर मुड़ी भूत सचर गे
पइसा कमीसन के भारी
कतेक काटही चक्क्रर
ए दफ़्तर ले ओ दफ्तर
संसो म जी बेहाल होगे
सुहावत नई हे खाना पीना
मुसकिल करदिच जीना
वह रे मोर ददा के बीमा
--------------------------
बीमा के पहली तोला सेवा
अउ मेवा घलो ख़वाही
अटको म तय नई माने
तोर परवार ल भुलवारही
आधा पइसा ल पा तो गे
फेर तोला चक्कर लगवाही
लगावत लगावत चक्कर
जिनगी के बेरा अधियाही
चारठन गलती रोज बताही
तोर नाम तोर दाई के नाम
नई जुड़े हावय कहिके एमा
तोर ददा लउहा कइसे मरगे
आखरी किस्ती अउ दस्तखत
ल अब कोन करहि एमा
जघा जघा म जा जा के
निकल गे मोर पसीना
मुसकिल करदिच जीना
वह रे मोर ददा के बीमा
-









बुधवार, 13 मई 2015

पढाई ले मन जोड़ ले


एती तेती ल छोड़के पढाई ले मन जोड़ ले 
बेरा निकलत हे गियान ल धर सकेल ले 
अब्बड़ पछताबे संगी सबझन ल देख के 
मोबाईल ल पटक के सीटबाजी ल छोड़ दे 
समय जावत हे दाई ददा के भाखा धर ले 
एती तेती ल छोड़के पढाई ले मन जोड़ ले
बेरा निकलत हे गियान ल धर सकेल ले



M kant

मंगलवार, 5 मई 2015


छत्तीसगढ़ी कविता **गांव के रहैया** के कुछ पंक्ति...
-
-
ए जवइया तय गांव छोड़के कहा चले भईया
दुःख पीरा के संगी, हमर गांव के बहरा माटी
एला छोड़ तय नई पावच कोनो महल अटारी
तय तरिया के नहइया गुल्ली डंडा के खेलइया
नांगर जोतइया आमा चटनी बसी के खवइया
ए जवइया तय गांव छोड़के कहा चले भईया

जिहा जाबे लहुट आइबे अपन गांव हे बढ़िया
चारदिनिया सुहाही तोला शहर चकोरी भुइया
धुर्रा कचरा नाली मच्छर आउ हे सरहा पताल
सुग्घर चमके दिकथे उहा जम्मो में घर दुवार
बाहिर ले सरग तरी ले नरक बीमारी हे अपार
तय मेड़ के चलइया आउ खेत-खार के रेंगइया
ए जवइया तय गांव छोड़के कहा चले भईया

शुक्रवार, 20 मार्च 2015

नव दिन बर आए दाई मंदिर तोर सजगे ओ
नवरात्रि बर मल्हारगढ़ म ढोल नगाड़ा बजगे ओ
देखेबर तोर रूप ल दाई गाव गाव उमड़गे ओ
मल्हार-माता बनके डिडिनेश्वरी दाई कहाये ओ
तही ह काली तही हा अम्बा तही जगदम्बा दाई ओ
तही ह शीतला तही भवानी तही महामाया दाई ओ
तही ह दुर्गा तही ह काली तही कालरात्रि दाई ओ....

_ ___________________________
-
-
-
-
-
मिलन कांत
Nagar Panchayat Malhar

मंगलवार, 17 मार्च 2015

एक दिन के चुनाई के खातिर छन होवा झगड़ा 
भाई ल भाई के दुश्मन बनाके, करदिच बड़ लफड़ा 
अरे सत्ता पाबे, सिंहासन पाबे अउ का पाबे रूपया 
गांव के संगी साथी ल राजनीती हा करत हे दुरिहा 
पारा मुहल्ला हा लड़ मरत हे, हो जाथे ख़ूनख़राबी 
चुनाई के खातिर गाव गाव म होथे दंगाफसादी
पैसा खाके बोट बेचहा त करहा जिनगीभर गुलामी 
पड़े लिखे सज्जन ल चुनहा त सुनहि तुहर गुहारी 
विकाश के खातिर सबझन ल समझे ल पड़ही अपन जवाबदारी।

Milan Kant nagar panchayat malhar
जंगल म चुनाई आगे 

जंगल म चुनाई आगे  
बेंदरा मन पी पी के बौरागे
लोमड़ी भेड़िया हाव हाव करात हे 
आचार संहिता जंगल म होवत हे 
हिरनु, ज़बरु मन भूख मरत हे 
हाथी, कोलिहा, आउ चिता
ये मन ल हे टिकट के चिंता
टिकट के हे सब्बो जघा शोर
भालू लगाहे अडबर जोर
अधियक्ष बनावा एक बार
जंगल ल करदेहव अंजोर
जगा जगा म कुवा बनाहव
जंगल म पानी ल लाहव
खरगोश भैया निर्दली खड़ेहे
सबझन से आघू बड़ेहे
कछुवा हा टिकट के खातिर
महामंत्री बघवा से निवेदन करत हे
एकबार टिकट दे दे बबा
मोर पक्ष म सब जंगल होवत हे
बघवा काहीच - तै का करबे सियानी
का तै ले आबे मोर बर रोज बिरयानी ?
छोड़ रे बेटा कछुवा तै झनकर नादानी
चुनाई वो ही लडही जे हा कुवा तालाब बनवाहि
पानी पिए ल तालाब के किनारे हिरन मन आहि
जेकर खातिर रोज मोर पिकनिक हो जाहि
अरे बिकास के वादा हे सब लबारी
राजनीती म एहिच होते संगवारी
चुनाव के झंझट म झीन पड़
तोर बर खरगोश के अडबर रीस हे
कबर की जेकर लाठी तेकर भइस हे.
छत्तीसगढ़ी कबिता----"" धान लुवाई "
चुनाई 

चुनाई ह जइसे जइसे तीरयावत हे 

लबरा नेता घरो घर झांकत हे 
दीदी बहिनी ददा दाई महतारी 
कहिके मीठ मीठ गुठियावत हे 
कंबल साडी रूपया पैसा देके 
पांव तरी गीर जावत हे
चुनाई तक मनखे मनखे एक बरोबर
ओखर बाद जाती पाती के भेद सबोबर
आजादी कहा हे, हे! गरीब, छ.ग. के मनखे ?
जागव तुमन, ताकत ल पहिचानव अपन के
=
=
=
=

मिलन कांत
नगर पंचायत मल्हार
मोर नवा छत्तीसगढ़ी कबिता ''मोबाइल के जमाना''
))))))))))) दैनिक भास्कर में प्रकाशित ((((((((((((( आंशिक संशोधन के पश्चात प्रस्तुत हैं-- 

छत्तीसगढी कविता ''''''मोर बड़वा बईला''


काबर भागे मोर बिन पुछी के बड़वा बईला
मोर जीनगी के संगी अकेल्ला काबर छोड़े मोला
गांव गली खेत बारी बगीचा खोज डारेव तोला
तोर सुरता म नींद उड़ागे हो जाथे लहूवा बिहान
कभु गांव के आघु नई निकले, तरसत हे परान
दाई ददा बर लईका ह लईकेच रथे तै रई कतको सियान
तोर बीना कोटना पैरा अउ गेरवा के का हे काम
माथा पीरागे खोजत खोजत बोझा ह पटकागे
अषाढ़ सावन बीतगे आसो खेती ह पीछवागे
कइसे करहव किसानी अब समय घलो गवागे
दूख दरद हर अइसे लागे हमरेच घर समागे
कोठी डोली सुन्ना होगे आवय कुकुर न बिल्ला
इही ल कहिथे संगी गरीबी म होगे आटा गिल्ला
काबर भागे मोर बिन पुछी के बड़वा बईला
मोर जीनगी के संगी अकेल्ला काबर छोड़े मोला
कोकरो झिन चोराबे खाबे बारी ल झिन उजाड़बे
जियत जागत पर के नारी ,धन म नजर झिन गड़ा बे
पर के धन ह पथरा हे बेटा लालच झिन कभु करबे
घोर कलजूग हे बेटा अपन रद्दा म आबे जाबे
काबर भागे मोर बिन पुछी के बड़वा बईला
मोर जीनगी के संगी अकेल्ला काबर छोड़े मोला
गांव गली खेत बारी बगीचा खोज डारेव तोला
.

.
.
.बाकी ल बाद म पडीहा संगी हो
milan kant
9098889904