सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

***जिनगी के बोझा***



***जिनगी के बोझा***
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*****************दोहा*******************

नोनी बहनी नोहय ग, जिनगी के रे बोझ !
टूरा मनतो मारथे, कहू निकलथे सोझ !!
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बदला बिचार खूदके, बेटा बड़ाहि कूल !
अबके लइका टांगथे, दाई ददा ल सूल !!
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बोझ असल ओहीच हे, देत बुढ़ापा छोड़ !
भारी होथे दुख दरद, खसलत जिनगी मोड़ !!
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कपूत आके मेटथे, घर कुरिया अउ खेत !
गुनले तैहा जीवन म , बने लगाके चेत !!
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बड़े अमर-बेले जरी, दुसर खून चूसाय !
असल बोझ सनसारके, जेन लूट के खाय !!
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आपी सोचा बोझ हे, कोन सकल संसार !
ओही जाने बोझ ला, भोगय दूख अपार !!
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
Photo//Google

**कवि मोला झिन कईहा संगी** मयतो एक छत्तीसगढ़िहा अव-

****आगे बसंत सरसरी हवा****


** का काम के ? **

******खुद ल गरीब बताथच******

चार दिन के हासी ठीठोली ल मया झीन कहिबे


चार दिन के हासी ठीठोली ल
मया झीन कहिबे
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छइहा म तो सबों मीठ गीत ल
सुघ्घर राग म गाथे
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जिनगी म घाम—आच आए ले
बड़े—बड़े पलातान हो जाथे
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मया के खालहे दूख के चिखला
जेन ह एला सहिथे
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अटल मयारु सबो बताथे
खड़बड़—खईया रद्दा ले दूरिहाथे
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हरियर तन के लालची मन
देवदास बने फिरथे
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चसमा टोपी जिन्स पहिरे
लुभावन मया जताथे
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बिपत परे म ओही देवदास संगी
कलेचुप खसक जाथे
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पढ़हार्इ् लिखाई के दिन म तै
साहरुक सलमान के गोठ टमरे
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इसटाइल मरवईया मयारु
जिनगी के दूख कईसे सहिबे
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चार दिन के हासी ठीठोली ल
मया झीन कहिबे ।।
मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

लेवा आज फेर पढ़हव हमर छत्तीसगढ़ी भाषा के दरद ल सकेले मोर रचना.......