मंगलवार, 23 अगस्त 2016

मोर गाॅव.................

मोर गाॅव.................

गांव के आघु भोला हे, जिहा लगथे मेला रे
गढ़ के खाल्हे तरिया हे, तीर म कनकन कुआँ हे
नईया खाल्हे हवय, डिड़ीन दाई के छांव...
आबे भईया घुमे ल, मलारे मोर गाॅव....
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माटी माटी सोना हे, धनहा हमर भुईया हे
निलागर नदिया के कोरा म, चनवरी सुननसुनिया हे
अड़बड़ अकन तरिया हे, छग म सोर हे इहाके नाव
आबे भईया घुमे ल मलारे मोर गाॅव....
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तईहाके गोठ कहत हे, सोना इहा बरसे हे
हांडी-गुन्डी खड़बड़ हे, किस्सा कहानी अड़बड़ हे,
राजा रहिच शरभपुरिया, प्रसन्नमात्र जेकर नाव
आबे भईया घुमे ल मलारे मोर गाॅव....
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मिलन मलरिहा








अटकू-बटकू, छोटकी-नोनी जऊहर धूम मचाए

अटकू-बटकू, छोटकी-नोनी जऊहर धूम मचाए
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होली के रंगोली म, हुड़दंग मचे हे भारी
छोटकी-नोनी धरे गुलाल, पोतत संगी-संगवारी
अटकू-बटकू घरले निकले, तानके रे पिचकारी
एकेच पिचका म रंग सिरागे, फेर भागे दूवारी
रंग गवागे बाल्टी ले जईसे कुँआ ले अटागे पानी
पानी के होवत बरबादी, समझगे छोटकी-नोनी
पिचकारी ल फेंक सबोझन, थइली म भरे रंगोली
नांक-गाल म पोत गुलाल, खेलत हे सुक्खा-होली
छिन-छिन बटकू घर म जाके खुर्मी-ठैठरी ल लाए
संगे बतासा भजिया सोहारी अऊ पेड़ा ल खाए
अटकू-बटकू, छोटकी-नोनी जऊहर धूम मचाए...
नंगाड़ा नइ थिरके थोरकुन, बेरा पहागे झटकुन
डनाडन बाजय गमकय, सबके कनिहा मचकुन
मंगलू कहे सुन भाई कोदू, दारु लादे-ग चिटकुन
दूनोंके तमकीक-तमका म सिन्न परगे थोरकुन
झुमा-झटकी म झगरा होगे, पुलिस-दरोगा आगे
दारु-नसा के चक्कर म, किलिल-किल्ला ह छागे
मंगलू, कोदू पुलिस देख, गिरत-हपटत ले भागे
थिरकत नंगाड़ा ह फेर अपन मया-ताल गमकाए
अटकू-बटकू, छोटकी-नोनी जऊहर धूम मचाए...
बादर होगे रंग-गुलाली, सबोजघा हे लाली-लाली
हरियर-लाली रंग पेड़के, जइसे तिरंगा हर डाली
सरग-बरोबर लगे हमर छत्तीसगढ़ अंगना-दूवारी
नसा-तिहार झीन बनावा, मया-परेम बगरावा
छोटकी-छोटकू, नोनी-बाबू ल नसा झिन बतावा
नवा-पीढ़ी ल गोली-भांग, फूहड़ीपन मत सिखावा
भरभर-भरभर जरतहे होली, सत के रद्दा देखाए
भगत पहलाद के होलिका फूफू आगी म समाए
लईकामन भगवान रुप हे, कपट-छल नई भाए
दिनभर दउड़त-नाचत-खेलत जऊहर धूम मचाए...
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rajim times//// akhari bera

नष्ट झिनकरा संगी, रुखराई वन बन---------------**घनाक्षरी**

**घनाक्षरी** vardik chhand
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नष्ट झिनकरा संगी, रुखराई वन बन

जीवजन्तु कलपत, सुनले पुकार रे !

प्राण इही जान इही, सुद्ध हवा देत इही

झिन काट रुखराई, अउ जंगल खार रे !

कल-पत हे चिराई, घर द्वार टूटे सबो

संसो-छाए लईका के, आंसु के बयार रे!

जीव के अधार इही, नानपन पढ़े सबो

आज सबो पढ़लिख, होगे हे गवार रे!
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पर घर नास कर, छाबे जब घर संगी
काहापाबे सुखसांती, बिछा जही प्यार रे!

अपन बनौकी बर, दुख तैहा ओला देहे

भोग-लोभ करकर , बिगा-ड़े संसार रे

सबोके महत्व हे जी, खाद्य श्रृंखला जाल म

छोटे नोहै कहुं जीव, करले बिचार रे !

नदि नाला जंगल ले, उपजे गांव गांव ह

रुखराई जीवजन्तु, आज तै सवार रे !

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मिलन मलरिहा

AA Ge He Ashad

****दैनिक भास्कर*****
**(संगवारी) 5-7-16**

धरके रपली------ kundaliya Chhand

धरके रपली जाँहुजी, खेत मटासी खार ।
भरगे पानी खेत मा, बगरे नार बियार।।
बगरे नार बियार, लकड़ी झिटका टारहू ।
अघुवगे सब किसान, खातु लऊहा डारहू।।
मिलन मन ललचाय, चेमढाई भाजी टोरके।
बने मिले हे आज, कोड़िहव रपली धरके ।।

मिलन
मलरिहा

Mati Ke Mitan

//////***विषय- **फुटु***///////

/////**** कुण्डलियाँ****/////
//////***विषय- **फुटु***///////
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पैरा के कोठार मा, फुटू पाएन आज ।
छाता ताने कम रहिस, डोहड़ु डोहड़ु साज।।

डोहड़ु डोहड़ु साज, सुग्घर चकचक चमकथे।
जेदिन चुरथे साग, पारा परोस ललचथे ।।
देखे आथे रोज, झांकत कोलहू भैरा ।
फुटू साग के आस, उझेले खरही पैरा ।।
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चुरके चिटिकन माड़थे, काला देबो साग ।
पाइ जाबे रे तहु फुटु, भिन्सरहे तो जाग।।
भिन्सरहे तो जाग, घपटे फुटु सुवर्ग सही।
लगे पैरा म आग, सावन के परेम इही ।।
कहत मलरिहा रोज, खार जा कुदरी धरके।
बनफुटु बड़ घपटाय, अब्बड़ मिठाथे चुरके।।


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर



क़लाम जइसे बन जाबे 30-7-16 kirandoot

* हरेली तिहार** कुण्डलियाँ

////***कुण्डलियाँ*** हरेली तिहार**////
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रिचपिच रिचपिच बाजथे, गेड़ी ह सब गाँव।
लइका चिखला मा कुदे, नई सनावय पाँव ।।
नई सनावय पाँव, गेड़ी ह अलगाय रथे ।

मिलजुल के फदकाय, चाहे कतको सब मथे।।
मलरिहा ल कुड़काय, तोर ह बाजथे खिचरिच।
माटी-तेल ओन्ग, फेर बाजही ग रिचपिच ।।
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जीत खेलत सब नरियर, बेला-बेला फेक ।
दारु-जुँवा चढ़े हवय, कोनो नइहे नेक ।।
कोनो नइहे नेक , हरेली गदर मचावत ।
करके नसा ह खेल, घरोघर टांडव लावत।।
मलरिहा ह डेराय, देखके दरूहा रीत ।
नसा म डुबे समाज, कईसे मिलही ग जीत ।।



मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर 
Copyright@milan-malariha/blog
Date-2nd Aug 2016 --12:40

''''''ढेकी''''''