गुरुवार, 3 नवंबर 2016

***हिन्दी है हम***

***हिन्दी है हम*** 14/09/2016
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संस्कृत जननी, हिन्दी माई
अउ छत्तीसगढ़ी हे मोर दाई
नवाजूग अंगरेजी बहुरिया के
चलत हे कनिहा मटकाई ॥
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घर मा बहुँ अंगरेजिया हे
बेटा घलो परबुधिया हे
रास्ट्रभासा नईहे कोनो
तभे तो भारत इंडिया हे
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नई चलत हे ककरो गोठ
ओकरे बोल हे सबले पोठ
कोट कचहरी ठाठ जमाए
खाके तीन तेल होगे मोठ ॥
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समे के इही मांग हवय
बहुरिया संगे जुग चलय
लईकामन अंगरेजवा होगे
दाई के भाखा लाज लगय ॥
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सास ससुर के दिन पहागे
जईसे संस्कृत दूर झेलागे
अंगरेजी के गर्रा-धूका म
हिन्दी ह जऊहर उड़ियागे ॥
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कोनो कतको थाह देहत हे
बड़े-बड़े परयास होवत हे
रुख लगाए भर ले का होही
अंगरेजी के कलमी जोड़त हे ॥
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर ।

क्यों

क्यों 
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खुद जानते हो निर्धनता का जड़ नशा है
श्रेष्ठ चरित्र का स्त्रोत श्वते-भोजन में बसा है
तो राह सत्य की ओर मोड़ क्यों नहीं देते
मांस-मदिरा तुम छोड़ क्यों नहीं देते ?
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मधुशाला में सुबहो-शाम दीप जलाते
कलम किताब क्रय पर कंजूसी कर जाते
बच्चों की शिक्षा पर निर्धनता बोध कराते
पिता का कर्तव्य, पहचान क्यों नही लेते ?
मांस-मदिरा.........................................
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बेटी की विवाह में खेत-जायजाद गँवा दिये
इसी बात की दिन-प्रतिदिन रट लगा लिये
आधे से अधिक धन नशा-तास पर बिछा दिये
अपनी नीचता जग-जाहिर क्यों नही कर देते ?
मांस-मदिरा...........................................
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खुदके रिस्तों-नातों पर ईर्ष्या-द्वेष भाव रखते
दिखावे पर दिन गुजारते अकड़कर सान से चलते
दाल-चावल भले ही ना रहे पिते और पिलाते
गृहस्थ-जीवन त्याग बैरागी क्यों नही बन जाते
बोझील है तुमसे धरा, संसार छोड़ क्यों नहीं देते ?
मांस-मदिरा............................................


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
9098889904

इही जिनगानी रे

मानले तै मान मलरिहा, इही जिनगानी रे..
जानले तै जानले मनवा, इही हमर कहानी रे..
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माई-पिल्ला रोज कमाथन, खेतीखार बारी पलोथन ।
तरिया तीर खड़ेहे टेड़ा, डुमत डुमत होगे बेरा ॥
जिनगी ह पहावत इसने, बड़ लागा बाढ़ी रे....
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मिरचा धनिया भाटा गोभी, करेला कुन्दरु अउहे लौकी।
रमकेलिया खड़े बिन संसो, तरोई नार बगरे हे लंझो॥
भाव निच्चट गिर जाथे ग, निकलथे साग हमर बारी रे..
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पढ़लिख के निनासतहे बेटा, खेतीखार बारी बरछा।
कुदरी-गैती नई सुहावय, बुता बनी ब ओहा लजावय॥
कोनो अब कहा तै पाबे, पढ़ेलिखे मेड़ बंधानी रे.....
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बादर ह दुरिहावत हावय, पानी घलो अब नई माड़य।
खेतखार कलपत रोवत, मनखे ल बतावत हावय ॥
अतेक बिकासे का कामके, जरगे जंगल-झारी रे...
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मानले तै मान मलरिहा, इही जिनगानी रे..
जानले तै जानले मनवा, इही हमर कहानी रे..
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

खेतखारे मा चहकत मैना

खेतखारे मा चहकत मैना, पड़की करे मुसकान रे
सुग्घर दमदम खेत मा संगी, नाचत हावय धान रे
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घरोघर कहरत माटी के भीतिहा छुही म ओहा लिपाय रे
चुल्हा के आगी कुहरा देवत, ए पारा ओ पारा जाय रे
बबा के गोरसी मा चुरत हावय, अंगाकर परसा पान रे
खेतखारे मा...................
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धान ह निच्चट छटकगे भाई आगे देवारी तिहार रे
घाम ह अजब निटोरत हावय सुहावत अमरैया खार रे
कटखोलवा रुख ल ठोनकत हावय देवत बनकुकरा तान रे
खेतखारे मा.................
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पवन ह धरे बसरी धुन ला, मन ला देहे हिलोर रे
कार्तिक बहुरिया आवत हावय, जाड़ के मोटरा जोर रे
खेत के पारे सरसों चंदैनी, लेवतहे मोरे परान रे
खेतखारे मा...................
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नदियाँ नरवा कलकल छलछल निरमल बोहावत धार रे
इही हे गंगा जमुना हमरबर शिवनाथ निलागर पार रे
सरग सही मोर गांव ला साजे, इही मोर सनसार रे.....
खेतखारे मा..............
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर