शुक्रवार, 20 मार्च 2015

नव दिन बर आए दाई मंदिर तोर सजगे ओ
नवरात्रि बर मल्हारगढ़ म ढोल नगाड़ा बजगे ओ
देखेबर तोर रूप ल दाई गाव गाव उमड़गे ओ
मल्हार-माता बनके डिडिनेश्वरी दाई कहाये ओ
तही ह काली तही हा अम्बा तही जगदम्बा दाई ओ
तही ह शीतला तही भवानी तही महामाया दाई ओ
तही ह दुर्गा तही ह काली तही कालरात्रि दाई ओ....

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मिलन कांत
Nagar Panchayat Malhar

मंगलवार, 17 मार्च 2015

एक दिन के चुनाई के खातिर छन होवा झगड़ा 
भाई ल भाई के दुश्मन बनाके, करदिच बड़ लफड़ा 
अरे सत्ता पाबे, सिंहासन पाबे अउ का पाबे रूपया 
गांव के संगी साथी ल राजनीती हा करत हे दुरिहा 
पारा मुहल्ला हा लड़ मरत हे, हो जाथे ख़ूनख़राबी 
चुनाई के खातिर गाव गाव म होथे दंगाफसादी
पैसा खाके बोट बेचहा त करहा जिनगीभर गुलामी 
पड़े लिखे सज्जन ल चुनहा त सुनहि तुहर गुहारी 
विकाश के खातिर सबझन ल समझे ल पड़ही अपन जवाबदारी।

Milan Kant nagar panchayat malhar
जंगल म चुनाई आगे 

जंगल म चुनाई आगे  
बेंदरा मन पी पी के बौरागे
लोमड़ी भेड़िया हाव हाव करात हे 
आचार संहिता जंगल म होवत हे 
हिरनु, ज़बरु मन भूख मरत हे 
हाथी, कोलिहा, आउ चिता
ये मन ल हे टिकट के चिंता
टिकट के हे सब्बो जघा शोर
भालू लगाहे अडबर जोर
अधियक्ष बनावा एक बार
जंगल ल करदेहव अंजोर
जगा जगा म कुवा बनाहव
जंगल म पानी ल लाहव
खरगोश भैया निर्दली खड़ेहे
सबझन से आघू बड़ेहे
कछुवा हा टिकट के खातिर
महामंत्री बघवा से निवेदन करत हे
एकबार टिकट दे दे बबा
मोर पक्ष म सब जंगल होवत हे
बघवा काहीच - तै का करबे सियानी
का तै ले आबे मोर बर रोज बिरयानी ?
छोड़ रे बेटा कछुवा तै झनकर नादानी
चुनाई वो ही लडही जे हा कुवा तालाब बनवाहि
पानी पिए ल तालाब के किनारे हिरन मन आहि
जेकर खातिर रोज मोर पिकनिक हो जाहि
अरे बिकास के वादा हे सब लबारी
राजनीती म एहिच होते संगवारी
चुनाव के झंझट म झीन पड़
तोर बर खरगोश के अडबर रीस हे
कबर की जेकर लाठी तेकर भइस हे.
छत्तीसगढ़ी कबिता----"" धान लुवाई "
चुनाई 

चुनाई ह जइसे जइसे तीरयावत हे 

लबरा नेता घरो घर झांकत हे 
दीदी बहिनी ददा दाई महतारी 
कहिके मीठ मीठ गुठियावत हे 
कंबल साडी रूपया पैसा देके 
पांव तरी गीर जावत हे
चुनाई तक मनखे मनखे एक बरोबर
ओखर बाद जाती पाती के भेद सबोबर
आजादी कहा हे, हे! गरीब, छ.ग. के मनखे ?
जागव तुमन, ताकत ल पहिचानव अपन के
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मिलन कांत
नगर पंचायत मल्हार
मोर नवा छत्तीसगढ़ी कबिता ''मोबाइल के जमाना''
))))))))))) दैनिक भास्कर में प्रकाशित ((((((((((((( आंशिक संशोधन के पश्चात प्रस्तुत हैं-- 

छत्तीसगढी कविता ''''''मोर बड़वा बईला''


काबर भागे मोर बिन पुछी के बड़वा बईला
मोर जीनगी के संगी अकेल्ला काबर छोड़े मोला
गांव गली खेत बारी बगीचा खोज डारेव तोला
तोर सुरता म नींद उड़ागे हो जाथे लहूवा बिहान
कभु गांव के आघु नई निकले, तरसत हे परान
दाई ददा बर लईका ह लईकेच रथे तै रई कतको सियान
तोर बीना कोटना पैरा अउ गेरवा के का हे काम
माथा पीरागे खोजत खोजत बोझा ह पटकागे
अषाढ़ सावन बीतगे आसो खेती ह पीछवागे
कइसे करहव किसानी अब समय घलो गवागे
दूख दरद हर अइसे लागे हमरेच घर समागे
कोठी डोली सुन्ना होगे आवय कुकुर न बिल्ला
इही ल कहिथे संगी गरीबी म होगे आटा गिल्ला
काबर भागे मोर बिन पुछी के बड़वा बईला
मोर जीनगी के संगी अकेल्ला काबर छोड़े मोला
कोकरो झिन चोराबे खाबे बारी ल झिन उजाड़बे
जियत जागत पर के नारी ,धन म नजर झिन गड़ा बे
पर के धन ह पथरा हे बेटा लालच झिन कभु करबे
घोर कलजूग हे बेटा अपन रद्दा म आबे जाबे
काबर भागे मोर बिन पुछी के बड़वा बईला
मोर जीनगी के संगी अकेल्ला काबर छोड़े मोला
गांव गली खेत बारी बगीचा खोज डारेव तोला
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.बाकी ल बाद म पडीहा संगी हो
milan kant
9098889904

छत्तीसगढ़ म फैले हे बिमारी

सिकछा ह तमासा बनगे भारी

कोनो लईका ल फैल नई करना

का बात के हे अतेक लचारी ?

गुरूजी के मुड़ी म मुतत हे लईका

ग्रेडिंग a b c d नवा तरीका

इसकुल जाना हे भात खाना हे

साकछर छत्तीसगढ़ देखाना हे

अ अनार नहि अनपढ़ बनना हे

ब बाबु के संग बकरी चराना हे

कुल मिलाके इसतर ल गिराना हे

गरिब के लईका कहाँ पढ़ही

सरकरी इसकुल के खपरा पुराना हे

का बताव भैया काला सुनावव ग

गरिबी म कइसे टूवीसन पड़ावव ग

सरकारी इसकुल के का हाल बताना हे

सब्बो ल सिक्छीत रिकाड म देखाके

साकछर छत्तीसगढ़ देखाना हें .............
सबला पास फेल कोनो ल नइ करना हे
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मिलन कांत
छत्तीसगढी रचनाकार
हाथी के लइका हाथी बनथे
डोमी के लइका डोमी बनथे
सेर के लइका सेर बनथे
का मनखे के लइका मनखे बनथे ?
सुमित चरित जबले आ जाथे
पर के नारी बहनी महतारी ल
अपन दाई बहनी समझथे
तबजाके मनखे बनथे
बहनी मन ल बचावा
एक सुघ्घर सुमित बनावा
दुसर के बिहनी नारी ल देख
जेन बेटा बउराथे
करम गलत कर डारथे
दाई-ददा के मुड़ी नव जाथे
पढ़ाई लिखाई चुल्हा म जाथे
जेन इही समय ल गवाथे
भविष्य म बड़ दूख पाथे
मिलन मलरिहा के इही सुमिरन हे
अपन बाई ह बाई आय
अउ पर बाई ह दाई आय
समझ के समझिहा
समझ आही त समझइहा
सबले पहली अपन खुद म अजमइहा
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मिलन कांत (मलरिहा)
छत्तीसगढी रचनाकार
"अंगाकर रोटी"

एदे अंगाकर रोटी घलो रेंग दीस
आज के चकाचोंध ओला ढपेल दीस
नवा बिचार , नवा लइका बहुरिया
नवा डिश , नवा भजिया, नवा लहुरिया
छत्तीसगढ़ ले बाहिर ओला खेद दिस
मुड़ी धरके खोज डारेव जम्मो जघा
छत्तीसगढ़ के कोंटा कोंटा म आंखि भवरगीस
एदे अंगाकर रोटी घलो रेंग दीस
आज के चकाचोंध ओला ढपेल दीस
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मिलन कांत
(nagar Panchayat Malhar )
photo By Daulat Ram Chauhan
Dainik bhaskar (Sangwari) 02-07-2014 प्रकाशित कविता " डोकरा बाबा"
''समय के महत्व ''
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जेन समय ल तय गवाए बाबू
वोला तै कभू नई पावच ग
समय ल जेन समय म पहचानिस 
वो ह कलेक्टर इंजीनियर बनिस
समय ल मटरगस्ती म जेन गवाइस
वोला समय ह समय म बातही ग
जेन समय ल तय गवाए बाबू
वोला तै कभू नई पावच ग
पड़े के समय एकेच बार हे संगी
फिर नई मिलाय मौका ग
एति ओती ल छोड़व तुमन
पुस्तक कपि ले कर ले परेम ग
जेन समय ल तय गवाए बाबू
वोला तै कभू नई पावच ग
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Milan kant
नगर पंचायत मल्हार

यह जीवन न जाने क्यों पाया ?
यहाँ गहरे घावों की है साया
विकट विकराल है परिस्थियाँ
साथ छोड़ सकता है परछाईया
इस जीवन में पल पल
बहुत है खोया बहुत है पाया
फिर सोंचता रहता हूँ
मथता रहता हूँ
समेव अग्नि जलता हूँ
अंतिम राख मिटटी में है काया
यह जीवन न जाने क्यों पाया ?
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**** मिलन कांत ****
****९०९८८८९९०४*****


मोर नवा छत्तीसगढ़ी कविता **बड़का दाई** के छोटे अंस आप सबो बर ------
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मोर दाई ओ महतारी ओ 
तही मोर बड़का दाई ओ 
सेके-सवारे हमला बड़े करे
किस्सा कहानी रोज रथिया सुनाये
तइहा के गोठ घेरिबेरी समझाए
रमाएन महभारत मुहजुबानी बताये
अपन दुलरवा नाती मोला बनाये
गलती करेव त ददा मारे ल जब दाऊडाये
अपन लुगरा म सपटाए बचाये
तोर मया ल कइसे भुलावव ओ
मोर दाई ओ महतारी ओ
तही मोर बड़का दाई ओ
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मिलन कांत

छत्तीसगढी कविता ‪#‎बेटी‬'' के कुछ लाईन आप सभी के लिए (दैनिक भास्कर / सन् 2010 में प्रकाशित ) Milan Kant
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दाई के कोरा म लईका तरगे
बहनी संग जाके इसकूल म पढ़गे
पेल ढपेल के टींकू होगे दसमीं पास
दाई ददा ल बारवीं के घलो हे आस
दाई ददा टींकू ल पढ़ाईच सहर के आघु
बेटी ल पढ़ाईच गांव के पाछु
अब किसमत म होना रहीच खास
सिकरेट दारू बनगे टींकू के परम मितान
11वीं म टींकू रोज घुमथे मोबाइल के साथ
अब का बतावव टींकू के दूख भरे दसतान
दाई ददा के आस ल तोड़के बेटा होगे कुकर्मी
जेकर आस नई करीच तेन बेटी बनगे शिक्षाकर्मी
आज समझ म आगे भईया बेटा ले बड़ीहा बेटी
बेटा ह घर कुरिया ल उजारथे त सवारथे बेटी
दाई ददा ल रोवाथे बेटा त आसु ल पोछथे बेटी


॥ मिलन कांत
मल्हार बिलासपुर

जेन संघर्ष करथे ओला 
अकेल्ला निकले बर पड़़थे
कीचड़ ले कमल जगाए खातिर
अंधियारी म दीया जलाना पड़थे
सब्बो ओखर से अनजान होथे
सनसार म जघा बनाए खातिर
अपन खुद के मन ल मनाए पड़थे
पंडवानी के भीम तो सबो होथे
जब जबले मानव, मानव ल सताथे
तब तबले कानूनी "भीम" बनके
सनसार म सतपुरूस ल आए बर पड़थे



milan kant

# मेरे युवा संघर्षरत हम मित्रो में लिए एक रचना आप सबकी ओर
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भागदौड़ गरीबी की आंधी ने झकझोरा 
संघर्षो के पवन ने उसे धकेला 
फिर होना ही था एक नया सवेरा
उम्मीद डगमगाएंगे है नीत नये तूफान
किसी ने हमें कहा
कविता तुम क्यों लिखते हर दरमियान ?
अब तो इन्ही का सहारा है
नहीं तो हमें किसने पहचाना है
राहे कठिन है, बाते आसान है
मैदान में आकर देखो
संघर्ष के राह तले खड़े लाखो जवान है
अभी खत्म नहीं हुआ है चिंताए
नीत नीत नए आयाम तैयार है
गुरु समझने की भूल न करना खुद को
गुरु के गुरु खड़े लाखो पहलवान है
मैदान में आकर देखो
संघर्ष के राह तले खड़े लाखो जवान है

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-मिलन कांत 
एक रचनाकार 


नगाड़ा ह नगाड़ा ल कहिथे, सुन तो एकठन बात
हमन दुनो ल गदा- गद काबर ठोकत हे आज
जेन ल देख तेन नशा म ठोक-ठाक के जावत हे
बुधारू समारू नाचत गावत कनिहा ल हलावत हे
होली ल नशा तिहार बनाके रीत ल भुलावत हे 
जम्मो पारा परोसी भांग गोली म मतावत हे
इसने करके एमन होली तिहार कइसे मनावत हे ?
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मिलन कांत


Published By Dainik BHASKAR

ना कर अभिमान कि मानव है 
अब कल पुर्जो चलने जो लगे 
नीत नए शोध नया विज्ञानं है 
मशीन मानव या मानव मशीन 
किसने किसको कैसे बनाया 
कहना मानना मजबूर इन्शान है
ना कर अभिमान कि मानव है
अब कल पुर्जो चलने जो लगे
नीत नए शोध नया विज्ञानं है। ....
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मिलन कांत




बहरा खार म रोवत हे रुख-राई 
पत्ता मुरझागे अंग अंग सुखागे 
गरमी म चारो मुड़ा मातगे करलाई
अभी के चिक्कन बमरी होगे ठुड़गा 
कलजुग म लइका होवत हे बुड़गा 
बमरी ल देख के परसा चुलकावत हे
पत्ता ह खलखल ले झरगे कहिके
सबो रुख-राई ल बतावत हे
जम्मो कुरिया छोड़ जावत हे चिरई
बहरा खार म रोवत हे रुख-राई
गरमी म चारो मुड़ा मातगे करलाई
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मिलन कांत

छत्तीसगढ़ी कविता '' आखरी बेरा '' के कुछ अंश आपके ओर.....
का बात के मोह हे तोला
का बात के मया जी
का बात के गरभ हे डोकरा 
मोल तै बता न जी
कतेक रुपिया कतेक पइसा
कतेक साईकिल गाड़ा भईसा
ये जिनगी के ठुड़गा बमरी
एक दिन चूल्हा म जोराही
जाये के बेर अक्केल्ला जाबे
कोनोच संग म नई जाहि
जिनगी के आखरी बेरा
सब्बो दुरिहा हट जाहि
दुइच दिन रो गा के ओमन
महानदी म तोला फेक आहि
दशनहावन म जम्मो जुरके
तोर बरा सोंहारी ल चाबही
फेर का बात के मोह हे तोला
का बात के मया जी
का बात के गरभ हे डोकरा
मोल तै बता न जी
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युवा रचनाकार
मिलन कांत
नगर पंचायत मल्हार