रविवार, 4 फ़रवरी 2018

sher aur chuha (शेर और चूहा) -बालगीत

एक और चूहा
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बात बड़ी पुरानी है
एक चूहे की कहानी है

एक शेर था उस वन में
डर फैला था जन जन में

सारा जंगल परेशान था
बल का उसको अभिमान था

एकदिन आया वहां शिकारी
जाल फैलाया चउओर सारी

उसमें फस गया शेरु राजा
अकड़ का उसका बज गया बाजा

फिर चूहे को दया आ गया
जाल काटकर उसे बचाया

शेरु ने अपनी गलती मानी
जुरमिल कर रहने की ठानी

यही है जीवन की सच्चाई
छोटा बड़ा नई कोई भाई

मिलन मलरिहा
मल्हार
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शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

छत्तीसगढ़ी बाल गीत- -::मेला जाबो::-

बाल कविता
मेलाबाल कविता
मेला जाबो-

मेला जाबोन चलना दीदी
झुलबो उँहाँ ढेलवा ।।

भुलावन नही भीड़-भाड़ मा
नईतो हावन लेढ़वा ।।

देना दाई एको रुपिया
सरकस घलो हम जाबो ।।

हाथी भालु बघवा देखके
अब्बड़ मजा ल पाबो ।।

आवत बेरा दाई तोरबर
ओखरा लेके आबो ।।
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मिलन मलरिहा
मल्हार

आगे आगे फागुन

आगे आगे फागुन
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आगे आगे फागुन रस टपके आमा मऊँरे
पड़की-मैना के मन ला खिंचत हावय रे
लाली लाली परसा ह दुल्ही बने बईठे हे

मेछा ताने सेम्हरा ह दूल्हा खड़े हे....
आगे आगे फागुन.........
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खेतबीच नाँचतहे सरसो पीयर पीयर रे
मेड़ तीर समरतहे, लम्बु राहेर रे
दुनों झुमतहे जाबोन बरतिया कहिके
दऊड़ दऊड़ कोयली ह हाका पारत हे..
आगे आगे फागुन..........
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डुमर सास ह चमचम चमकत हावय रे
मऊँहा ससुर ह पागा बाँधे हे
चार-कसही मन, साला-साली बने हे
देखतो सेम्हरा के भाग फहरे हे........
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तिवरा-अकरी दुनो नवा जिंस पहिरे
चना-बटुरा बरतिया बने हे
बनकुकरा ह घुम घुम बलावत हावय
बरतिया खाये ल जाहा कहिके
आगे आगे फागुन.............
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मिलन मलरिहा
मल्हार

माटी बर मया ल जगावा रे - मिलन मलारिहा

माटी बर मया ल जगावा रे
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बेचा था उत्ताधूर्रा खेत खलिहाने भुईया
गवागे नांगर संगी संगेसंग गाड़ा बईला
बबा के चिनहा ल तो राखा रे .............
माटी बर मया ल जगावा रे......

रुखराई जरगे सबो खेत खलियाने बरगे
हरियर भुईया खपगे गाँव गाँव फेक्टरी छागे
खेती बारी ल झीन भुलावा रे .............

नवा जूग आगे भईया संगेसंग सबो चलबो
दऊरी बेलन छोड़के हर्बेस्टर हमन धरबो
फेर पर्रु बर पैरा ल बचावा रे...............

पररजिया इहाँ छागे भाखा बोली ह बिछागे
ऊंकर भाखा तरी छत्तीसगढ़ी लदकागे
महतारी भाखा ल बचावा रे...............
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::::मिलन मलरिहा:::
::::बिलासपुर:::

बाल गीत// -कोयली आजा

बाल गीत//
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कोयली आजा, गीत सुनाजा
बसंत आगे अब तो आजा
सुनतो मैना कहाँ तै जाबे
मोर आरो ल ओला सुनाबे
भेंट डारबे त कहिबे ओला
सुन्ना लागे तोर बीन मोला
तोर सहेली, पड़की अकेल्ला
पाके बेंदरा, मार डकेल्ला
लऊहा आजा, बसंत रानी
झीनकर तैहा अब मनमानी
तोर तान बीन सब मुरझाएँ
तही बतादे, काबर रिसाएँ

मिलन मलरिहा
मल्हार
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बालगीत - तिवरा बटकर

तिवरा बटकर
पुदक लटकर
आगे किसान
भाग रे झटकर
लऊठी धरे हे
गुस्सा करे हे
मटासी खार
राहेर फरे हे
चल ना जाबो
ऊहूच ला खाबो
बाचही तेला
घर ले आबो
ए दीदी कोरी
हाँ बहन लोरी
माँग के खाबो
नई करन चोरी

मिलन मलरिहा
मल्हार
लटकर=लटदार (बीज से भरें)
बटकर=(तीवर/मटर/राहेर) के कच्चे बीज
झटकर/लऊहा(झटकन)= जल्दी से
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छत्तीसगढ़ी बालगीत - मिलन मलरिहा

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