गुरुवार, 6 अगस्त 2015

*********रूख लगावा*जंगल बचावा********

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उठ जा किसान जाग जा कब तोर निंदवा भागही
आसो पानी टिपीक टापक हे थरहा कब जागही

खेती म जूवा खेले छत्तीसगढीहा चिनता बड़ भारी
बूता करइया नइ हे कोनो ठलहा बइठे अरई तुतारी
रूख कटाई म मउसम रिसागे ओला अब मनावा
आवा सब्बो जूरमील घरोघर एकेक रुख लगावा
ओखर छांव तरी दूखके बेरा झटकुन बुलक जाही
बला बला के ओही ह संगी करीया बादर ल लाही
उठ जा किसान .............................................

मसीनवा जूग हे संगी उदयोग धनधा होगे अपार
जंगलझाड़ी झरगे दिनदिन ढुड़गा होवत सनसार
झन काटव रूखराई ल जीवजनतु के सूनव गोहार
अपन बनौकी बर बीगाड़व झन दूसर के घरदुवार
चारदिनीया चंदेनी खातिर हरियर रुख ल झनमार
चिराई जीव ल तरसाके जीनगी सुख कइसे आही 
उठ जा किसान .............................................

फुरहुर फुरहुर पवन नदागे जाने कहा ले धुर्रा आगे
नदिया नरवा कुआँ तलाव तरिया ले पानी अटागे
अभी असाढ सावन भादो म कउख्खन गरमी आगे
जंगल के मितान पानी हे संगी ओला फेर सजावा
आवा सब्बो जूरमील घरोघर एकेक रुख लगावा
ओही ह संगी,हमर जीनगी खार मानसुन ल बलाही
उठ जा किसान .............................................
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मिलन मलरिहा

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