मंगलवार, 17 मार्च 2015

छत्तीसगढी कविता ''''''मोर बड़वा बईला''


काबर भागे मोर बिन पुछी के बड़वा बईला
मोर जीनगी के संगी अकेल्ला काबर छोड़े मोला
गांव गली खेत बारी बगीचा खोज डारेव तोला
तोर सुरता म नींद उड़ागे हो जाथे लहूवा बिहान
कभु गांव के आघु नई निकले, तरसत हे परान
दाई ददा बर लईका ह लईकेच रथे तै रई कतको सियान
तोर बीना कोटना पैरा अउ गेरवा के का हे काम
माथा पीरागे खोजत खोजत बोझा ह पटकागे
अषाढ़ सावन बीतगे आसो खेती ह पीछवागे
कइसे करहव किसानी अब समय घलो गवागे
दूख दरद हर अइसे लागे हमरेच घर समागे
कोठी डोली सुन्ना होगे आवय कुकुर न बिल्ला
इही ल कहिथे संगी गरीबी म होगे आटा गिल्ला
काबर भागे मोर बिन पुछी के बड़वा बईला
मोर जीनगी के संगी अकेल्ला काबर छोड़े मोला
कोकरो झिन चोराबे खाबे बारी ल झिन उजाड़बे
जियत जागत पर के नारी ,धन म नजर झिन गड़ा बे
पर के धन ह पथरा हे बेटा लालच झिन कभु करबे
घोर कलजूग हे बेटा अपन रद्दा म आबे जाबे
काबर भागे मोर बिन पुछी के बड़वा बईला
मोर जीनगी के संगी अकेल्ला काबर छोड़े मोला
गांव गली खेत बारी बगीचा खोज डारेव तोला
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.बाकी ल बाद म पडीहा संगी हो
milan kant
9098889904

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