मंगलवार, 17 मार्च 2015

जंगल म चुनाई आगे 

जंगल म चुनाई आगे  
बेंदरा मन पी पी के बौरागे
लोमड़ी भेड़िया हाव हाव करात हे 
आचार संहिता जंगल म होवत हे 
हिरनु, ज़बरु मन भूख मरत हे 
हाथी, कोलिहा, आउ चिता
ये मन ल हे टिकट के चिंता
टिकट के हे सब्बो जघा शोर
भालू लगाहे अडबर जोर
अधियक्ष बनावा एक बार
जंगल ल करदेहव अंजोर
जगा जगा म कुवा बनाहव
जंगल म पानी ल लाहव
खरगोश भैया निर्दली खड़ेहे
सबझन से आघू बड़ेहे
कछुवा हा टिकट के खातिर
महामंत्री बघवा से निवेदन करत हे
एकबार टिकट दे दे बबा
मोर पक्ष म सब जंगल होवत हे
बघवा काहीच - तै का करबे सियानी
का तै ले आबे मोर बर रोज बिरयानी ?
छोड़ रे बेटा कछुवा तै झनकर नादानी
चुनाई वो ही लडही जे हा कुवा तालाब बनवाहि
पानी पिए ल तालाब के किनारे हिरन मन आहि
जेकर खातिर रोज मोर पिकनिक हो जाहि
अरे बिकास के वादा हे सब लबारी
राजनीती म एहिच होते संगवारी
चुनाव के झंझट म झीन पड़
तोर बर खरगोश के अडबर रीस हे
कबर की जेकर लाठी तेकर भइस हे.

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