बुधवार, 10 जून 2015

**दाई-ददा **

छोड़ के तै गुमान ल संगी
बन जा पिरीत जोड़इया ग
चारदिनिया हे जिनगी हमर
दाई ददा ल झिन भुलइहा ग
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जाही त नइ पावच ओला
फेर गुन गुन के तै रोबे ग
ओही दाई के मया कोरा ल
कोनो जिनगी कइसे पाबे ग..
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सौ जनम ल कोन ह देखे
पतियाए काकर भाखा ग
इही जिनगी  दुख  पीरा के
करले इहेच हे पुन पाप  ग..
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ए जिनगी एकबार हे संगी
दाई ददा घलो एकबार हे ग
कइसे छुटबे तै मया के लागा
ए जिनगी ओखर उधार हे ग..
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छोड़ के तै गुमान ल संगी
बन जा पिरीत जोड़इया ग
चारदिनिया हे जिनगी हमर
दाई ददा ल झिन भुलइहा ग
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.मिलन मलरिहा

2 टिप्‍पणियां:

  1. मिलन भाई बड़ सुग्घर रचना हे ग।
    दाई ददा के मान बढ़ाये।
    बहुत बहुत बधाई हो।

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