सोमवार, 30 नवंबर 2015

॥॥ ॥ सुवच्छता के बीसय म॥॥॥॥ DOHA

**छत्तीसगढ़ के पागा**


घर के कुड़ा सकेल के , घुरवा ले के डार।
खातू बनही काम के, नई लगही उधार।।
जेबीक खातू छिच के, खेत ल बने सवार।
कीटनासक ल छोड़के , घरके दार बघार।।
जग म कचरा बिखरे हे, बनजर होवत खार।
झोला धरे बजार जा, झिल्ली पन्नी बीदार।।
मन के कचरा ल पहली , फेर फेक आने ल।
झिल्ली कुड़ाकरकट लद्दी, धर सकेल अपने ल।।
खुद तही सुधर ग लहरी, सनसार सुधर जाय।
सबो जीव सुयम एक हे, नइ लगय कछु उपाय।।
जेन ल देख तेन भाइ, फोटु खिचाए ल आय।
जोंगय ओहा सबो ल, अपन नेता कहाय।।
बड़हत परदूसन धरा, दिनदिन पानि भगाय।
किसान रोवय किसानी, काला दूख बताय।।
आवा मिलके टुट पड़ा, कचरा राक्छस ताय।
झउहा झउहा फेकदे, खचवा तरि कुड़हाय।।
सुवक्छता बर परन करा, कचरा रख सकलाय।
कुड़ादान म रखबो जी, चाहे घुरवा जाय।।


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

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