बुधवार, 15 जुलाई 2015

*** किसान के दुख ***

आ गे हे अषाढ़ ह संगी 
सावन ह तिरयावत हे 
पानी ल बला बला  के 
बेंगचा ह चिल्लावत हे 

चार दिन के टिपिक टापक 
खेत म नई माड़हत हे 
हमर तो मरना होगे संगी 
धान ह जर जावत हे 
तभो ले पानी काबर आतिच
किसान ल रोवावत हे 
आ गे हे अषाढ़ ………………

किसान के दुख हे भईया
खेत ह सुखावत हे 
धान पान नई होही त
कइसे जीनगी चलाबो ग 
उठ बिहिनीहा सुध ह 
खेतच म चले जावत हे 
आ गे हे अषाढ़ ………………

सपना होगे पानी ह भाई
बादर ह दुरिहावत हे 
नांगर बइला घर बइठके
अकाल ल गोहरावत हे 
अषाढ़ बनगे चइत भईया
डबरा खचवा ल छोड़ 
जम्मो तारिया ह सुखावत हे 
आ गे हे अषाढ़ ………………

लगथे अकाल पड़गे भईया
लागा दिन दिन बाढ़त हे 
बिजहा बर लेहेव बाढ़ी
दुई कोरी कुरो के धान
छूटे बर छुटत हे परान
आजा बदरी मलार खार म 
जीवरा मोर रोवत हे 
किसान के दुख़ देख के 
खेती ले बिसवास उठत हे 
आ गे हे अषाढ़ ………………
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मिलन मलरिहा


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