आ गे हे अषाढ़ ह संगी
सावन ह तिरयावत हे
पानी ल बला बला के
बेंगचा ह चिल्लावत हे
चार दिन के टिपिक टापक
खेत म नई माड़हत हे
हमर तो मरना होगे संगी
धान ह जर जावत हे
तभो ले पानी काबर आतिच
किसान ल रोवावत हे
आ गे हे अषाढ़ ………………।
किसान के दुख हे भईया
खेत ह सुखावत हे
धान पान नई होही त
कइसे जीनगी चलाबो ग
उठ बिहिनीहा सुध ह
खेतच म चले जावत हे
आ गे हे अषाढ़ ………………।
सपना होगे पानी ह भाई
बादर ह दुरिहावत हे
नांगर बइला घर बइठके
अकाल ल गोहरावत हे
अषाढ़ बनगे चइत भईया
डबरा खचवा ल छोड़
जम्मो तारिया ह सुखावत हे
आ गे हे अषाढ़ ………………।
लगथे अकाल पड़गे भईया
लागा दिन दिन बाढ़त हे
बिजहा बर लेहेव बाढ़ी
दुई कोरी कुरो के धान
छूटे बर छुटत हे परान
आजा बदरी मलार खार म
जीवरा मोर रोवत हे
किसान के दुख़ देख के
खेती ले बिसवास उठत हे
आ गे हे अषाढ़ ………………।
/
/
/
/
/
मिलन मलरिहा
सावन ह तिरयावत हे
पानी ल बला बला के
बेंगचा ह चिल्लावत हे
चार दिन के टिपिक टापक
खेत म नई माड़हत हे
हमर तो मरना होगे संगी
धान ह जर जावत हे
तभो ले पानी काबर आतिच
किसान ल रोवावत हे
आ गे हे अषाढ़ ………………।
किसान के दुख हे भईया
खेत ह सुखावत हे
धान पान नई होही त
कइसे जीनगी चलाबो ग
उठ बिहिनीहा सुध ह
खेतच म चले जावत हे
आ गे हे अषाढ़ ………………।
सपना होगे पानी ह भाई
बादर ह दुरिहावत हे
नांगर बइला घर बइठके
अकाल ल गोहरावत हे
अषाढ़ बनगे चइत भईया
डबरा खचवा ल छोड़
जम्मो तारिया ह सुखावत हे
आ गे हे अषाढ़ ………………।
लगथे अकाल पड़गे भईया
लागा दिन दिन बाढ़त हे
बिजहा बर लेहेव बाढ़ी
दुई कोरी कुरो के धान
छूटे बर छुटत हे परान
आजा बदरी मलार खार म
जीवरा मोर रोवत हे
किसान के दुख़ देख के
खेती ले बिसवास उठत हे
आ गे हे अषाढ़ ………………।
/
/
/
/
/
मिलन मलरिहा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें