शुक्रवार, 29 मई 2015

मोर ददा के बीमा

मुसकिल करदिच जीना
वह रे मोर ददा के बीमा
मरइया मर के चले जाथे
लइका मन बड़ दुःख पाथे
बीमा करइया ल दुःख के
कइसे नई होयव चिनहारी
ओखर मुड़ी भूत सचर गे
पइसा कमीसन के भारी
कतेक काटही चक्क्रर
ए दफ़्तर ले ओ दफ्तर
संसो म जी बेहाल होगे
सुहावत नई हे खाना पीना
मुसकिल करदिच जीना
वह रे मोर ददा के बीमा
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बीमा के पहली तोला सेवा
अउ मेवा घलो ख़वाही
अटको म तय नई माने
तोर परवार ल भुलवारही
आधा पइसा ल पा तो गे
फेर तोला चक्कर लगवाही
लगावत लगावत चक्कर
जिनगी के बेरा अधियाही
चारठन गलती रोज बताही
तोर नाम तोर दाई के नाम
नई जुड़े हावय कहिके एमा
तोर ददा लउहा कइसे मरगे
आखरी किस्ती अउ दस्तखत
ल अब कोन करहि एमा
जघा जघा म जा जा के
निकल गे मोर पसीना
मुसकिल करदिच जीना
वह रे मोर ददा के बीमा
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बुधवार, 13 मई 2015

पढाई ले मन जोड़ ले


एती तेती ल छोड़के पढाई ले मन जोड़ ले 
बेरा निकलत हे गियान ल धर सकेल ले 
अब्बड़ पछताबे संगी सबझन ल देख के 
मोबाईल ल पटक के सीटबाजी ल छोड़ दे 
समय जावत हे दाई ददा के भाखा धर ले 
एती तेती ल छोड़के पढाई ले मन जोड़ ले
बेरा निकलत हे गियान ल धर सकेल ले



M kant

मंगलवार, 5 मई 2015


छत्तीसगढ़ी कविता **गांव के रहैया** के कुछ पंक्ति...
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ए जवइया तय गांव छोड़के कहा चले भईया
दुःख पीरा के संगी, हमर गांव के बहरा माटी
एला छोड़ तय नई पावच कोनो महल अटारी
तय तरिया के नहइया गुल्ली डंडा के खेलइया
नांगर जोतइया आमा चटनी बसी के खवइया
ए जवइया तय गांव छोड़के कहा चले भईया

जिहा जाबे लहुट आइबे अपन गांव हे बढ़िया
चारदिनिया सुहाही तोला शहर चकोरी भुइया
धुर्रा कचरा नाली मच्छर आउ हे सरहा पताल
सुग्घर चमके दिकथे उहा जम्मो में घर दुवार
बाहिर ले सरग तरी ले नरक बीमारी हे अपार
तय मेड़ के चलइया आउ खेत-खार के रेंगइया
ए जवइया तय गांव छोड़के कहा चले भईया