शनिवार, 27 जून 2015

## चल नांगर बइला जोर ले ##


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चल धरले नांगर संगे बइला जोर ले
बलावत हे तोला बहरा खेत के माटी
अरई तुतारी ल घलो जोर सकेल ले
मेड़ तरी कोचईपान म बइठे बेंगवा
रइह रइह तोला जपत गोहरावत हे ..
रिमझिम रिमझिम  पानी धुन म
आनीबानी सवनहा कीरा मटमटात हे
संगे पिटपिटी सपवा अड़बड़ निकले
डबरा के  चिखला तरी जोखवा बइठे
बइला भाईसा आयेके ओला अगोर हे..
घोंघी गेंगरुवा अउ केकरा के सोर हे
घूमर घूमर बादर गरजे पानी ह बरसे
छाता ल बने बीजहा संग धरजंगोर ले
चल धरले नांगर संगे बइला जोर ले.........
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मिलन मलरिहा
छत्तीसगढ़िहा

*****क्यों कराये हमें आजाद ?*****


आजादी का वह ताम्रपत्र
शहीदो ने जो पाया
घीस गये वसुंधरा में
बस लोहा टीन बन पाया
क्यों किया तुमने यह
क्या खोया क्या पाया ?
यही पूछते है सभी फिसाद
रहने देते गुलाम हमें
क्यों कराये तुम हमें आजाद ?
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कलयुगी ज्ञान देती ललकार
आजादी से बड़े सुचना का अधिकार
कैसे पके है आपके बाल ?
लाठी टेक क्यों लन्दन गए
बीना शस्त्र कैसे किये प्रहार
यही पूछते है सभी फिसाद
रहने देते गुलाम हमें
क्यों कराये तुम हमें आजाद ?
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मिलन मलरिहा

बुधवार, 10 जून 2015

**दाई-ददा **

छोड़ के तै गुमान ल संगी
बन जा पिरीत जोड़इया ग
चारदिनिया हे जिनगी हमर
दाई ददा ल झिन भुलइहा ग
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जाही त नइ पावच ओला
फेर गुन गुन के तै रोबे ग
ओही दाई के मया कोरा ल
कोनो जिनगी कइसे पाबे ग..
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सौ जनम ल कोन ह देखे
पतियाए काकर भाखा ग
इही जिनगी  दुख  पीरा के
करले इहेच हे पुन पाप  ग..
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ए जिनगी एकबार हे संगी
दाई ददा घलो एकबार हे ग
कइसे छुटबे तै मया के लागा
ए जिनगी ओखर उधार हे ग..
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छोड़ के तै गुमान ल संगी
बन जा पिरीत जोड़इया ग
चारदिनिया हे जिनगी हमर
दाई ददा ल झिन भुलइहा ग
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.मिलन मलरिहा

गुरुवार, 4 जून 2015

फिर तू एक गॉव बसाएगा

फिर तू एक गॉव बसाएगा
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राहें निकलती है उस ओर
गॉव खेत के अंतिम छोर 
नीत आता सूरज गॉव से
वह  भी तो चला है जाता
शहरो की ओर ही भागता
अब जगह जगह है शहरी
सब जीव हो गए बहरी
थककर तू कुछ न पायेगा
नीव का इट गिर जायेगा
फिर तू एक गॉव बसाएगा
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वे पंछी गाते गीत वहां की
जिसने सीखा यहाँ चलना
वह भी दिन दूर नहीं
तू रो रो कर पछतायेगा
जिस दिन जलती देह लेकर
तू मातृभूमि की छाव आयेगा
रगड़ रगड़ मिटटी में ये तन
तालाबों में डुबकी लगाएगा
एकदिन चकचौंध नकारकर
फिर तू एक गॉव बसाएगा....
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बदलते परिवेष नवधरा 
धूप ही धूप से है भरा
तपती जलती वसुन्धरा
हरे-भरे दूब घास मिलेंगे
बागों में बस पुष्प खिलेंगे
नवराहे निर्माण सजाकर
गांव-खेतों से वृक्ष हटाकर
गगनचुम्बी मंजील गढ़कर
स्वमेव अनल दहलाएगा
शाँत मधुबन बरगद छाँव
मथ गुँजता चिखता पुकारेगा
फुल भँवरो की धुनश्रोता
फिर तू एक गॉव बसाएगा....
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-मिलन मलरिहा