शनिवार, 5 दिसंबर 2015

****** पागा ****** दोहा

# पागा(मान)/ पगड़ी # दोहा
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 छत्तीसगढ़िया 'पागा', रख ग बने पोटार।
पागा गिरही जेन दिन,जाहि इमान बजार।।
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पईसा रुपिया सूध म, भागत हे सनसार।
इमान कइसे बिसाबे, रुपिया हे भरमार।।
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सूत सूत म बसे धरे, जीनगी के कमाय।
पागा खूलत देर हे, झटकुन ओहा जाय।।
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सरपंच के पागा गए, गाँव नाके कटाय।
मनखे ले गलती होए, परवार दूख पाय।।
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तीन-पाँच छोड़ मितान, ईमान रख कमाय।
बने बने के सबे हे, नइतो सब दुरिहाय।।
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रुपिया-मान जेन धरे, ओही मनुस कहाय।
जोर सकेल दुनो ल तय, पड़ाइ सरल उपाय।।
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मेहनत करले बेटा, पड़ाइ के दिन आय।
बोचकही बेरा तोर, फेर पाछु पछताय।।


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

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