मंगलवार, 17 मार्च 2015

बहरा खार म रोवत हे रुख-राई 
पत्ता मुरझागे अंग अंग सुखागे 
गरमी म चारो मुड़ा मातगे करलाई
अभी के चिक्कन बमरी होगे ठुड़गा 
कलजुग म लइका होवत हे बुड़गा 
बमरी ल देख के परसा चुलकावत हे
पत्ता ह खलखल ले झरगे कहिके
सबो रुख-राई ल बतावत हे
जम्मो कुरिया छोड़ जावत हे चिरई
बहरा खार म रोवत हे रुख-राई
गरमी म चारो मुड़ा मातगे करलाई
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मिलन कांत

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