छत्तीसगढ़ी कविता '' आखरी बेरा '' के कुछ अंश आपके ओर.....
का बात के मोह हे तोला
का बात के मया जी
का बात के गरभ हे डोकरा
मोल तै बता न जी
कतेक रुपिया कतेक पइसा
कतेक साईकिल गाड़ा भईसा
ये जिनगी के ठुड़गा बमरी
एक दिन चूल्हा म जोराही
जाये के बेर अक्केल्ला जाबे
कोनोच संग म नई जाहि
जिनगी के आखरी बेरा
सब्बो दुरिहा हट जाहि
दुइच दिन रो गा के ओमन
महानदी म तोला फेक आहि
दशनहावन म जम्मो जुरके
तोर बरा सोंहारी ल चाबही
फेर का बात के मोह हे तोला
का बात के मया जी
का बात के गरभ हे डोकरा
मोल तै बता न जी
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युवा रचनाकार
मिलन कांत
नगर पंचायत मल्हार
का बात के मया जी
का बात के गरभ हे डोकरा
मोल तै बता न जी
कतेक रुपिया कतेक पइसा
कतेक साईकिल गाड़ा भईसा
ये जिनगी के ठुड़गा बमरी
एक दिन चूल्हा म जोराही
जाये के बेर अक्केल्ला जाबे
कोनोच संग म नई जाहि
जिनगी के आखरी बेरा
सब्बो दुरिहा हट जाहि
दुइच दिन रो गा के ओमन
महानदी म तोला फेक आहि
दशनहावन म जम्मो जुरके
तोर बरा सोंहारी ल चाबही
फेर का बात के मोह हे तोला
का बात के मया जी
का बात के गरभ हे डोकरा
मोल तै बता न जी
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युवा रचनाकार
मिलन कांत
नगर पंचायत मल्हार
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