मंगलवार, 23 अगस्त 2016

नष्ट झिनकरा संगी, रुखराई वन बन---------------**घनाक्षरी**

**घनाक्षरी** vardik chhand
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नष्ट झिनकरा संगी, रुखराई वन बन

जीवजन्तु कलपत, सुनले पुकार रे !

प्राण इही जान इही, सुद्ध हवा देत इही

झिन काट रुखराई, अउ जंगल खार रे !

कल-पत हे चिराई, घर द्वार टूटे सबो

संसो-छाए लईका के, आंसु के बयार रे!

जीव के अधार इही, नानपन पढ़े सबो

आज सबो पढ़लिख, होगे हे गवार रे!
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पर घर नास कर, छाबे जब घर संगी
काहापाबे सुखसांती, बिछा जही प्यार रे!

अपन बनौकी बर, दुख तैहा ओला देहे

भोग-लोभ करकर , बिगा-ड़े संसार रे

सबोके महत्व हे जी, खाद्य श्रृंखला जाल म

छोटे नोहै कहुं जीव, करले बिचार रे !

नदि नाला जंगल ले, उपजे गांव गांव ह

रुखराई जीवजन्तु, आज तै सवार रे !

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मिलन मलरिहा

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