////***कुण्डलियाँ*** हरेली तिहार**////
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रिचपिच रिचपिच बाजथे, गेड़ी ह सब गाँव।
लइका चिखला मा कुदे, नई सनावय पाँव ।।
नई सनावय पाँव, गेड़ी ह अलगाय रथे ।
मिलजुल के फदकाय, चाहे कतको सब मथे।।
मलरिहा ल कुड़काय, तोर ह बाजथे खिचरिच।
माटी-तेल ओन्ग, फेर बाजही ग रिचपिच ।।
/
जीत खेलत सब नरियर, बेला-बेला फेक ।
दारु-जुँवा चढ़े हवय, कोनो नइहे नेक ।।
कोनो नइहे नेक , हरेली गदर मचावत ।
करके नसा ह खेल, घरोघर टांडव लावत।।
मलरिहा ह डेराय, देखके दरूहा रीत ।
नसा म डुबे समाज, कईसे मिलही ग जीत ।।
।
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
Copyright@milan-malariha/blog
Date-2nd Aug 2016 --12:40
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रिचपिच रिचपिच बाजथे, गेड़ी ह सब गाँव।
लइका चिखला मा कुदे, नई सनावय पाँव ।।
नई सनावय पाँव, गेड़ी ह अलगाय रथे ।
मिलजुल के फदकाय, चाहे कतको सब मथे।।
मलरिहा ल कुड़काय, तोर ह बाजथे खिचरिच।
माटी-तेल ओन्ग, फेर बाजही ग रिचपिच ।।
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जीत खेलत सब नरियर, बेला-बेला फेक ।
दारु-जुँवा चढ़े हवय, कोनो नइहे नेक ।।
कोनो नइहे नेक , हरेली गदर मचावत ।
करके नसा ह खेल, घरोघर टांडव लावत।।
मलरिहा ह डेराय, देखके दरूहा रीत ।
नसा म डुबे समाज, कईसे मिलही ग जीत ।।
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
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Date-2nd Aug 2016 --12:40
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