शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

आगे आगे फागुन

आगे आगे फागुन
""""""""""""""""""""""

आगे आगे फागुन रस टपके आमा मऊँरे
पड़की-मैना के मन ला खिंचत हावय रे
लाली लाली परसा ह दुल्ही बने बईठे हे

मेछा ताने सेम्हरा ह दूल्हा खड़े हे....
आगे आगे फागुन.........
/
खेतबीच नाँचतहे सरसो पीयर पीयर रे
मेड़ तीर समरतहे, लम्बु राहेर रे
दुनों झुमतहे जाबोन बरतिया कहिके
दऊड़ दऊड़ कोयली ह हाका पारत हे..
आगे आगे फागुन..........
/
डुमर सास ह चमचम चमकत हावय रे
मऊँहा ससुर ह पागा बाँधे हे
चार-कसही मन, साला-साली बने हे
देखतो सेम्हरा के भाग फहरे हे........
/
तिवरा-अकरी दुनो नवा जिंस पहिरे
चना-बटुरा बरतिया बने हे
बनकुकरा ह घुम घुम बलावत हावय
बरतिया खाये ल जाहा कहिके
आगे आगे फागुन.............
/

/
मिलन मलरिहा
मल्हार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें