गुरुवार, 3 नवंबर 2016

इही जिनगानी रे

मानले तै मान मलरिहा, इही जिनगानी रे..
जानले तै जानले मनवा, इही हमर कहानी रे..
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माई-पिल्ला रोज कमाथन, खेतीखार बारी पलोथन ।
तरिया तीर खड़ेहे टेड़ा, डुमत डुमत होगे बेरा ॥
जिनगी ह पहावत इसने, बड़ लागा बाढ़ी रे....
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मिरचा धनिया भाटा गोभी, करेला कुन्दरु अउहे लौकी।
रमकेलिया खड़े बिन संसो, तरोई नार बगरे हे लंझो॥
भाव निच्चट गिर जाथे ग, निकलथे साग हमर बारी रे..
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पढ़लिख के निनासतहे बेटा, खेतीखार बारी बरछा।
कुदरी-गैती नई सुहावय, बुता बनी ब ओहा लजावय॥
कोनो अब कहा तै पाबे, पढ़ेलिखे मेड़ बंधानी रे.....
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बादर ह दुरिहावत हावय, पानी घलो अब नई माड़य।
खेतखार कलपत रोवत, मनखे ल बतावत हावय ॥
अतेक बिकासे का कामके, जरगे जंगल-झारी रे...
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मानले तै मान मलरिहा, इही जिनगानी रे..
जानले तै जानले मनवा, इही हमर कहानी रे..
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर

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