गुरुवार, 3 नवंबर 2016

क्यों

क्यों 
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खुद जानते हो निर्धनता का जड़ नशा है
श्रेष्ठ चरित्र का स्त्रोत श्वते-भोजन में बसा है
तो राह सत्य की ओर मोड़ क्यों नहीं देते
मांस-मदिरा तुम छोड़ क्यों नहीं देते ?
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मधुशाला में सुबहो-शाम दीप जलाते
कलम किताब क्रय पर कंजूसी कर जाते
बच्चों की शिक्षा पर निर्धनता बोध कराते
पिता का कर्तव्य, पहचान क्यों नही लेते ?
मांस-मदिरा.........................................
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बेटी की विवाह में खेत-जायजाद गँवा दिये
इसी बात की दिन-प्रतिदिन रट लगा लिये
आधे से अधिक धन नशा-तास पर बिछा दिये
अपनी नीचता जग-जाहिर क्यों नही कर देते ?
मांस-मदिरा...........................................
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खुदके रिस्तों-नातों पर ईर्ष्या-द्वेष भाव रखते
दिखावे पर दिन गुजारते अकड़कर सान से चलते
दाल-चावल भले ही ना रहे पिते और पिलाते
गृहस्थ-जीवन त्याग बैरागी क्यों नही बन जाते
बोझील है तुमसे धरा, संसार छोड़ क्यों नहीं देते ?
मांस-मदिरा............................................


मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
9098889904

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