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*****************दोहा*******************
नोनी बहनी नोहय ग, जिनगी के रे बोझ !
टूरा मनतो मारथे, कहू निकलथे सोझ !!
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बदला बिचार खूदके, बेटा बड़ाहि कूल !
अबके लइका टांगथे, दाई ददा ल सूल !!
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बोझ असल ओहीच हे, देत बुढ़ापा छोड़ !
भारी होथे दुख दरद, खसलत जिनगी मोड़ !!
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कपूत आके मेटथे, घर कुरिया अउ खेत !
गुनले तैहा जीवन म , बने लगाके चेत !!
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बड़े अमर-बेले जरी, दुसर खून चूसाय !
असल बोझ सनसारके, जेन लूट के खाय !!
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आपी सोचा बोझ हे, कोन सकल संसार !
ओही जाने बोझ ला, भोगय दूख अपार !!
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मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर
Photo//Google
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