गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

छठ घाट

 छठ पूजा छत्तीसगढ़ म घलो अब धूमधाम ले मनाये जावत हे। बिलासपुर अरपा नदी के तोरवा घाट एकर प्रमुख जघा बनगे हवै। बिलासपुर अरपा घाट अब एशिया के सबले बड़े छठ घाट के नाम ले विख्यात होगे। हर बछर इहाॅं हजारों श्रद्धालुजन जुरियाई के छठ मनाथे अउ ये बछर तो लगभग पचास हजार ले आगर भीड़ देखे ल मिलिस। हर बछर प्रशासन अउ छठ पूजा समिति पाटलीपुत्र संस्कृति विकास मंच आवा-जाही बर सुग्घर व्यवस्था करत आवत हे।



छठ पूजा बर छत्तीसगढ़िया मन के विचार:-

छठ पूजा बिहारी तिहार अउ संस्कृति के परब आय जेन हमर नदिया घाट म कब्जा करे हे। हमर छत्तीसगढ़िया संस्कृति के अपमान आय। हमर पुरखौती चिनहारी तरिया, नरवा, नदिया सबो ल हड़प के अपन संस्कृति ल बिहारी मन जमावत हे अउ जम्मो घाट-घठौंदा ल पोगराके अपन बताके झंडा गाड़के हमरे घाट म हमन ल आय- जाय नइ देवत हे। पररजिहा सरकार उॅंकर मदद करत हे जेन छत्तीसगढ़िया मनला देखे नइ जुड़ावत हे। इहाॅं बाहरी मनके कबजा तो हई हे अउ ओमन हमर पुरखौती चौक चौराहा के नाम, तरिया, नदिया, स्कूल कालेज के नाम हमर पुरखौती देवी देवता, बबा, संत महात्मा के नाम बदल के अपन हिसाब ले रखत हे। उॅंकर ये उदिम छत्तीसगढ़िया के घोर अपमान आय।

पररजिहा मनके बिचार:-

भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र आय जिहाॅं सबो धर्म, सम्प्रदाय, संस्कृति के सम्मान विधि सम्मत हे। हमन आजतक कभू दूसर पूजा पाठ संस्कृति के अपमान नइ करे हन। अब हमन खुदे छत्तीसगढ़ के निवासी बन गे हन। संगे संग वो मनखे जेन खुद ला छत्तीसगढ़िया कहत हे तेमन अपन घाट के सदा अपमान करिन हे। कभू नदि घाट के साफ-सफाई नइ करिन अउ जब हमन शासन प्रशासन ले मांग करके अरपा नदी के घाट ल सुग्घर सॅंवारेंन तब एमनके नजर परिच अउ हमर घाट, हमर नदिया कहत हे। अब सुग्घर घाट ल देखके घाट वाले बनत हे अउ पहली घाट-घठौंदा जतर-खतर परे रिहिस तब पुरखौती घाट वाले सियान कहाॅं गॅंवाए रिहिस। हमन छठ पूजा म सूर्य देवता के पूजा छठ मईया के रुप म करथॅंन। जेन संपूर्ण प्रकृति के जनक आय। संगे संग अरपा नदि के घाट घलो हमर प्रकृति दाई आय। हम सब प्रकृति के ही उपासक हॅंन अउ हमन चाहथॅंन सबोझन मिलके छठ दाई के आराधना म हिस्सा लेके प्रकृति उपासक बनय। मतभेद झन करय।

अन्य विचार:- 

छत्तीसगढ़ ही नही सबों कोति के युवा चकाचौंध म हे। जेन कोति रंगीन चमक दिखिस चल देथे। जइसे डांडिया नाचे बर भारी भीड़ रिगबिग रिगबिग नोनी मनके आगू पाछू मटकथे। डांडिया हर गुजरात ले नृत्य आय हे। जेन पूरा भारत भर प्रसिद्ध हे। ठीक अइसने करवाचौथ व्रत, टीबी सीनेमा ले पधारे हे। दाई दीदी मन दिखावा, सजावट, चमक धमक के बिना उपास धास ल छुवय नही। आज के नवा नेवरिया मन बर तिहार अब सजे धजे के मउका जइसे लगथे। ये चकाचौंध चमक धमक के युग आय। धर्म संस्कार, रुप- रंग, पहिनावा लपेटे, बने सॅंवरे भर मात्र 

मनखे के आवश्यकता हर बाढ़गे हे ये पाय के खर्चा घलो बाढे़ हे अउ एला पूरा करे बर आनीबानी के पदारथ करत हे। मतलब बदलाव के बेरा हे युग, बछर, समय, काल, संस्कृति सब बदलत हे। ककरो एकझन के दम नइहे जेन परके संस्कृति ले खिलवाड़ करही। एकर बर पूरा छत्तीसगढि़या जिम्मेदार हे। धरती सब एक हे फेर मनखे अलग-अलग हे। जइसे भारत माता, पाकिस्तान माता, बिहार झारखंड दाई, छत्तीसगढ़ महतारी सब हमर दाई के ही हिस्सा आय। मौसी दाई, बड़का दाई, डोकरी दाई आनीबानी के रुपरंग। 

अब खेत ले पानी बोहागे तब मेढ़ बाॅंधे ले का फायदा, बहुत देरी ले जाग पाय हे छत्तीसगढ़िया। तही बता? भला अपन संस्कृति ला, घाट-घठौंदा ला छत्तीसगढ़िया मन सजा- सवाॅंर के कब रखे हे? ये अरपा घाट म सुग्घर चमक धमक छठ पूजा ले आय हे। महतारी ल छठ सवाॅंगा पहिरे देवा।

 पूरा शहर के गंदगी ला हर बछर डोहारे लेगे के काम करथे अरपा दाई हर। छठ पूजा के दू दिन बने सजे-धजे दिखथे अउ बाकी दिन घाट म दारु बोतल बगरे, फुटे शीशी तितर-बितर दिखथे अउ मछरी चिंगरी धरइया मन आवत-जावत रहिथे। छत्तीसगढ़िया मनखे कभू नदिया-नरवा ल सुग्घर बनाय बर सरकार ले गोहार नइ पारिस। तेकर ले बने हे हमर अरपा घाट छठ मनाथे।

बिलासपुर शहर के जननी अरपा नदिया ला शत शत नमन वंदन अउ जोहार।

✍️मिलन मलरिहा

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