शनिवार, 13 सितंबर 2025

माॅं

 

माँ, तुम्हारी याद आती है...

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​घर की चौखट पर, एक चेहरा है,

मेरी राह तकता, एक पहरा है।

वो चेहरा है माँ का, वो पहरा है उसका प्यार,

जिससे दूर हूँ मैं, पर वो है मेरी आधार।

​दिन तो कट जाता है, काम की भाग-दौड़ में,

रातें सिसकती हैं, तेरी यादों के मोड़ में।

जब भी थकता हूँ, तेरा आँचल याद आता है,

तेरे हाथ का बना खाना, मन को बहुत भाता है।

​सोचता हूँ, कितने जल्दी बड़े हो गए,

दुनिया की होड़ में, तुझसे दूर हो गए।

तुम बूढ़ी हो गईं हो माँ, ये सोचकर दिल रोता है,

काश! वो समय वापस आए, जो तेरी गोदी में सोता है।

​माना कि नौकरी है, कुछ जिम्मेदारियाँ हैं,

पर तेरे बिना ये सब, बस मजबूरियाँ हैं।

लौट आऊँगा माँ, बहुत जल्द तेरे पास 

यही सोचकर जी रहा हूँ, लिए एक छोटी सी आस।


मिलन मलरिहा 🙏 

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