रविवार, 21 अक्तूबर 2018

आगे आगे फागुन- गीत । मिलन मलरिहा

//*आगे आगे फागुन*//
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आगे आगे फागुन रस टपके आमा के मऊँरे
पड़की-मैना के मन ला खिंचत हावय रे
लाली लाली परसा ह दुल्ही बने बईठे हे
मेछा ताने सेम्हरा ह दूल्हा खड़े हे....
आगे आगे फागुन.........
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खेतबीच नाँचतहे सरसो पीयर पीयर रे
मेड़ तीर मटकतहे, लम्बु राहेर  रे
दुनों झुमतहे जाबोन बरतिया कहिके
दऊड़ दऊड़ कोयली ह हाका पारत हे..
आगे आगे फागुन..........
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डुमर सास ह चमचम चमकत हावय रे
मऊँहा ससुर ह पागा बाँधे हे
चार-कसही मन, साला-साली बने हे
देखतो सेम्हरा के भाग जागे हे........

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तिवरा-अकरी दुनो नवा जिंस पहिरे
चना-बटुरा  बरतिया बने हे
बनकुकरा ह मोहरी ल तानत हावय

बरतिया खाये ल जाहा कहिके
आगे आगे फागुन.............
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मिलन मलरिहा
मल्हार

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