माँ........
____________________________
हे माँ! मैंने तेरे लिए किया ही क्या ?
आजतक मैंने, तुझको दिया ही क्या ?
जो किया, मैंने खुद के लिए किया ?
बस दिया, मुझसे तुने लिया ही क्या ?
आपने मुझमें पल पल सभ्यता गढ़ी
पर मैनें एकबार भी निभाया ही क्या.....
हे माँ! मैंने तेरे लिए किया ही क्या ?
आपने पत्थर में कमल खिला ही दिया
पर कमल पत्थरों में घर बसाया ही क्या.....
हे माँ! मैंने तेरे लिए किया ही क्या ?
मेरे लिए आपने कितनी यातनाएं सही
पर तुने कभी मुझे दुख जताया ही क्या......
हे माँ! मैंने तेरे लिए किया ही क्या ?
______________________________
रचना--
मिलन
मलरिहा
____________________________
हे माँ! मैंने तेरे लिए किया ही क्या ?
आजतक मैंने, तुझको दिया ही क्या ?
जो किया, मैंने खुद के लिए किया ?
बस दिया, मुझसे तुने लिया ही क्या ?
आपने मुझमें पल पल सभ्यता गढ़ी
पर मैनें एकबार भी निभाया ही क्या.....
हे माँ! मैंने तेरे लिए किया ही क्या ?
आपने पत्थर में कमल खिला ही दिया
पर कमल पत्थरों में घर बसाया ही क्या.....
हे माँ! मैंने तेरे लिए किया ही क्या ?
मेरे लिए आपने कितनी यातनाएं सही
पर तुने कभी मुझे दुख जताया ही क्या......
हे माँ! मैंने तेरे लिए किया ही क्या ?
______________________________
रचना--
मिलन
मलरिहा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें