शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2025

तोला देखे रहेंव........गढ़कलेवा के दुवार मॅं

 

तोला देखे रहेंव, गढ़कलेवा के दुवार मॅं

नाचे रहें तैंहा, करमा के ताल मॅं

ए गोई फुॅंदरा वाली, मया होगे रे,  मया होगे न....

पतरेंगी , कनिहा डोले रे भारी

करधनिया झूमर झूम झूले छनकारी 

तोर कजरी नैना भेदे दिलके पार ला -2

ए गोई फुॅंदरा वाली, मया होगे रे,  मया होगे न....


रुप के दीवाना होंगे मैंहा तोर रानी 

तोर कदम ताल थिरके मांदर थपकानी 

लहरबुंदिया छमछम झुमरे झनकार मॅंं -2

ए गोरी फुॅंदरा वाली, मया होगे रे,  मया होगे न


अरे कहाॅं गये गोरी शहरी भीड़ भाड़ मॅंं 

गिंजरत घूमत खोजेंव  रायपुर बजार मॅं

अगोरा मा बइठे रहेंव, मरीन ड्राइव पार मॅंं 2

ए गोरी फुॅंदरा वाली, मया होगे रे,  मया होगे न


तोला देखे रहेंव, गढ़कलेवा के दुवार मॅं

नाचे रहें तैंहा, करमा के ताल मॅं

ए गोई फुॅंदरा वाली, मया होगे रे,  मया होगे न....


✍️ मिलन मलरिहा 

गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

छठ घाट

 छठ पूजा छत्तीसगढ़ म घलो अब धूमधाम ले मनाये जावत हे। बिलासपुर अरपा नदी के तोरवा घाट एकर प्रमुख जघा बनगे हवै। बिलासपुर अरपा घाट अब एशिया के सबले बड़े छठ घाट के नाम ले विख्यात होगे। हर बछर इहाॅं हजारों श्रद्धालुजन जुरियाई के छठ मनाथे अउ ये बछर तो लगभग पचास हजार ले आगर भीड़ देखे ल मिलिस। हर बछर प्रशासन अउ छठ पूजा समिति पाटलीपुत्र संस्कृति विकास मंच आवा-जाही बर सुग्घर व्यवस्था करत आवत हे।



छठ पूजा बर छत्तीसगढ़िया मन के विचार:-

छठ पूजा बिहारी तिहार अउ संस्कृति के परब आय जेन हमर नदिया घाट म कब्जा करे हे। हमर छत्तीसगढ़िया संस्कृति के अपमान आय। हमर पुरखौती चिनहारी तरिया, नरवा, नदिया सबो ल हड़प के अपन संस्कृति ल बिहारी मन जमावत हे अउ जम्मो घाट-घठौंदा ल पोगराके अपन बताके झंडा गाड़के हमरे घाट म हमन ल आय- जाय नइ देवत हे। पररजिहा सरकार उॅंकर मदद करत हे जेन छत्तीसगढ़िया मनला देखे नइ जुड़ावत हे। इहाॅं बाहरी मनके कबजा तो हई हे अउ ओमन हमर पुरखौती चौक चौराहा के नाम, तरिया, नदिया, स्कूल कालेज के नाम हमर पुरखौती देवी देवता, बबा, संत महात्मा के नाम बदल के अपन हिसाब ले रखत हे। उॅंकर ये उदिम छत्तीसगढ़िया के घोर अपमान आय।

पररजिहा मनके बिचार:-

भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र आय जिहाॅं सबो धर्म, सम्प्रदाय, संस्कृति के सम्मान विधि सम्मत हे। हमन आजतक कभू दूसर पूजा पाठ संस्कृति के अपमान नइ करे हन। अब हमन खुदे छत्तीसगढ़ के निवासी बन गे हन। संगे संग वो मनखे जेन खुद ला छत्तीसगढ़िया कहत हे तेमन अपन घाट के सदा अपमान करिन हे। कभू नदि घाट के साफ-सफाई नइ करिन अउ जब हमन शासन प्रशासन ले मांग करके अरपा नदी के घाट ल सुग्घर सॅंवारेंन तब एमनके नजर परिच अउ हमर घाट, हमर नदिया कहत हे। अब सुग्घर घाट ल देखके घाट वाले बनत हे अउ पहली घाट-घठौंदा जतर-खतर परे रिहिस तब पुरखौती घाट वाले सियान कहाॅं गॅंवाए रिहिस। हमन छठ पूजा म सूर्य देवता के पूजा छठ मईया के रुप म करथॅंन। जेन संपूर्ण प्रकृति के जनक आय। संगे संग अरपा नदि के घाट घलो हमर प्रकृति दाई आय। हम सब प्रकृति के ही उपासक हॅंन अउ हमन चाहथॅंन सबोझन मिलके छठ दाई के आराधना म हिस्सा लेके प्रकृति उपासक बनय। मतभेद झन करय।

अन्य विचार:- 

छत्तीसगढ़ ही नही सबों कोति के युवा चकाचौंध म हे। जेन कोति रंगीन चमक दिखिस चल देथे। जइसे डांडिया नाचे बर भारी भीड़ रिगबिग रिगबिग नोनी मनके आगू पाछू मटकथे। डांडिया हर गुजरात ले नृत्य आय हे। जेन पूरा भारत भर प्रसिद्ध हे। ठीक अइसने करवाचौथ व्रत, टीबी सीनेमा ले पधारे हे। दाई दीदी मन दिखावा, सजावट, चमक धमक के बिना उपास धास ल छुवय नही। आज के नवा नेवरिया मन बर तिहार अब सजे धजे के मउका जइसे लगथे। ये चकाचौंध चमक धमक के युग आय। धर्म संस्कार, रुप- रंग, पहिनावा लपेटे, बने सॅंवरे भर मात्र 

मनखे के आवश्यकता हर बाढ़गे हे ये पाय के खर्चा घलो बाढे़ हे अउ एला पूरा करे बर आनीबानी के पदारथ करत हे। मतलब बदलाव के बेरा हे युग, बछर, समय, काल, संस्कृति सब बदलत हे। ककरो एकझन के दम नइहे जेन परके संस्कृति ले खिलवाड़ करही। एकर बर पूरा छत्तीसगढि़या जिम्मेदार हे। धरती सब एक हे फेर मनखे अलग-अलग हे। जइसे भारत माता, पाकिस्तान माता, बिहार झारखंड दाई, छत्तीसगढ़ महतारी सब हमर दाई के ही हिस्सा आय। मौसी दाई, बड़का दाई, डोकरी दाई आनीबानी के रुपरंग। 

अब खेत ले पानी बोहागे तब मेढ़ बाॅंधे ले का फायदा, बहुत देरी ले जाग पाय हे छत्तीसगढ़िया। तही बता? भला अपन संस्कृति ला, घाट-घठौंदा ला छत्तीसगढ़िया मन सजा- सवाॅंर के कब रखे हे? ये अरपा घाट म सुग्घर चमक धमक छठ पूजा ले आय हे। महतारी ल छठ सवाॅंगा पहिरे देवा।

 पूरा शहर के गंदगी ला हर बछर डोहारे लेगे के काम करथे अरपा दाई हर। छठ पूजा के दू दिन बने सजे-धजे दिखथे अउ बाकी दिन घाट म दारु बोतल बगरे, फुटे शीशी तितर-बितर दिखथे अउ मछरी चिंगरी धरइया मन आवत-जावत रहिथे। छत्तीसगढ़िया मनखे कभू नदिया-नरवा ल सुग्घर बनाय बर सरकार ले गोहार नइ पारिस। तेकर ले बने हे हमर अरपा घाट छठ मनाथे।

बिलासपुर शहर के जननी अरपा नदिया ला शत शत नमन वंदन अउ जोहार।

✍️मिलन मलरिहा

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शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025

भंडारपुरी - सतनाम धार्मिक स्थल #bhandarpuri Dham @Bhandarpuri dham

 Edited By

मिलन मलरिहा 17/10/2025



भंडारपुरी 

@Bhandarpuri_Dham

#bhandarpuri_dham

#@भंडारपुरी धाम

@ BHANDARPURI DHAM

#BHANDAR PURI Dham

#सतनाम धार्मिक केन्द्र 

#सतनाम केन्द्र। 

बुधवार, 10 सितंबर 2025

तइहा पंडवानी विधा के डोकरी दाई, लक्ष्मीबाई बंजारे

 छत्तीसगढ़ मा जब जब मंचीय कला प्रस्तुति के गोठ होथे। तब तब भरथरी के विख्यात गायिका सुरुज बाई खांडे, पंथी के अंतराष्ट्रीय ख्यातिलब्ध कलाकार देवदास बंजारे। पंडवानी विधा के विख्यात गायिका पद्म विभूषण तीजन बाई, ऋतु वर्मा अउ पंडवानी विधा के पहली पुरुष वर्ग के प्रसिद्ध कलाकार झाडूराम देवांगन जइसे पुरोधा मनके सुरता तुरते मन मा आ जथे। अभी के समय के लोग-लइका मन पंडवानी गायिका तीजन बाई , पद्मश्री उषा बारले, सम्प्रिया पूजा निषाद, शांति बाई चेलक ल ही जान पाथे। जइसे रुख मा हर ढेखरा, पाना ल पंदोली देवइया थॅंघाली रहिथे अउ पूरा रुख ल बोहईया थाॅंघा अउ थाॅंघा ल बोहईया जरी रथे। 

ठीक अइसने पंदोली के बुता कला-जगत पुरखौती गुरु के बताये रसता रहिथे। जेनला देखके, ओकरे जइसे बने के चाह मन मा धरके नवा कलाकार अपन मेहनत ले बड़े नामी कलाकार बनथे। 

          1960 सदी के बीतत बेरा म मंच के विशिष्ट पहचान पंडवानी के प्रथम यशस्वी पुरुष कलाकार स्व. झाडूराम देवांगन अउ पंथी विधा के नामी कलाकार देवदास बंजारे, प्रथम चर्चित पंडवानी गायिका श्रीमती लक्ष्मीबाई बंजारे रहिन। ये तीनों चर्चित नाम दुर्ग जिला के छोटे छोटे गाॅंव के रहइया आय। ओ बखत एमन दुर्ग जिला के सान कहलावय। आज छत्तीसगढ़ के गौरव हे। दुर्ग जिला साहित्यिक, कलात्मिक  जिला के नाम ले आज तक गौरवान्वित हे। नाचा, गम्मत, रहस, गीत-गोविन्द के पार्टी, चंदैनी गोंदा, कारी, देवार ढेरा, सोनहा बिहान, लोरिक चंदा, लोकरंजनी जइसे किसम - किसम के कला मंच अउ कलाकार ल दुर्ग जिला के पावन माटी हा जनम देय हे। 

 दुर्ग के झाडूराम देवांगन के प्रस्तुति देखके पूनाराम निषाद पंडवानी विधा म आघू बढ़िन। ठीक वइसने 60 वर्ष के लक्ष्मीबाई के प्रभाव महिला कलाकार मन ला पंडवानी कला के प्रति प्रेरित करिस। ओ बखत लक्ष्मीबाई के नाम चारों डहर गुॅंजेमान रहिस तब तीजन बाई हर मात्र आठ-नौ बछर के रहिन होही। अपन कइठन साक्षात्कार म पद्मविभूषण तीजन बाई हर लक्ष्मीबाई ले मोला प्रेरणा मिलिस कहिके ये बात ल स्वीकार करे हे। फेर इतिहास के ओ बेरा गवाही देवत हे कि लक्ष्मीबाई मंच के पहली पंडवानी गायिका नोहॅंय वो प्रथम  महिला पंडवानी गायिका आय। ओकर ले पहली सुखिया बाई कापालिक शैली (खड़ा होके गायन) मा पंडवानी गावत रहिच। सुखिया बाई रायपुर के मुनगी गाॅंव के निवासी रहिन। सुखिया बाई पुरुष मनके वेशभूषा म प्रस्तुति देवय। काबर कि ओ समय पंडवानी के विख्यात कलाकार रावन झीपन गाॅंव वाले ममा-भाॅंचा के जोड़ी बड़ प्रसिद्ध रहय। सुखिया बाई ल लगिस होही कि पंडवानी तो महाभारत के कथा म धर्म -अधर्म, राज-पाठ,लड़ाई-झगरा के किस्सा आय एकरे खातिर एहा वीरता, ओज वाणी ले सजे रहिथे। इही बात ल धरके सुखिया बाई पुरुष सवाॅंगा पहिरके, खुला बदन मंच म चढ़य। सुखियाबाई पुरुष वेषभूषा के खातिर प्रथम महिला पंडवानी गायिका के रुप म जन मानस मा चिनहारित नइ हो पाइस। सुखिया बाई ल जनता पुरुष गायक के रुप म देखिस। प्रथम महिला पंडवानी गायिका के दरजा अउ पंडवानी के पुरखौतिन दाई के गौरव श्रीमती लक्ष्मीबाई बंजारे के नाम हे।
         श्रीमती लक्ष्मीबाई बंजारे ल पंडवानी के पुरखिन दाई एकर बर कहिथे काबर कि ओहर पहली पंडवानी गायिका रहिन जेन हर महिला वेषभूषा मा पंडवानी के प्रस्तुति मंच म करिन। पहली कापालिक शैली म शुरुआत करिस बाद मा वेदमती शैली के साधक बनगे।
         श्रीमती लक्ष्मीबाई बंजारे के गुरु उॅंकर खुदके पिता दयाराम बंजारे रहिन। दयाराम बंजारे के ग्यारा जन बेटा अउ दूझन नोनी म मात्र लक्ष्मीबाई ही बाच पाइस।
सन 1944 बछर के देवारी परब म लक्ष्मी पूजा के दिन लक्ष्मी बाई हा जनम लिस एकरे खातिर उॅंकर नाॅंव लक्ष्मी के नाम मा रखिन। लक्ष्मी तो नाॅंव म रहिन फेर जिनगी हा लक्ष्मी के आभाव म बीतिन। माता फुलकुंवर हा अपन एकलौतिन बेटी लक्ष्मी ल बड़ मया दुलार देइन। 
         चौथी कक्षा ले लक्ष्मी बाई महाभारत, रमायण के परायण करके प्रमुख कथासार के मूल सूत्र ल टमर डर रहिस। 18 दिन तक लगातार पंडवानी गायकी के अनुभव के संग रमायण गायन म घलो बचपन ले कुशल कलात्मक गुण ल धर डरे रहिच।  लक्ष्मीबाई श्रेष्ठ कलाकार के संगेसंग पहली साक्षर महिला कलाकार घलो आय। लगभग पंदरा बछर के उमर ले मंच मा लक्ष्मीबाई पंडवानी गायन करत हे। 
पिता मशाल नाच के प्रख्यात कलाकार रहिच। जेन हर खड़े साज म चिकारा बजावय। बेटी लक्ष्मीबाई बंजारे घलो शुरुआत कापालिक शैली ले करिन बाद मा वेदमती शैली के साधक बनिस। लक्ष्मीबाई के बाद रितु वर्मा वेदमती शैली म आघू बढ़िन। आनिबानी के शैली, टोटका, लटक झटक हा नही बलकी कलाकार अपन साधना के दम मा आगू बढ़थे। लक्ष्मीबाई ल घलो अपन साधना के दम म मंजिल मिलिस। ओहर आकाशवाणी के प्रथम पंडवानी गायिका आय। 1972 ले लक्ष्मीबाई आकाशवाणी म प्रस्तुति देवत आत हे। श्रीमती लक्ष्मीबाई बंजारे हा मोतीबाग, महाराष्ट्र मंडल, आदिवासी लोक कला परिषद् के मंच अउ उदियाचल के आयोजन म पंडवानी के प्रस्तुति देके जन-जनार्दन मनला मंत्रमुग्ध कर अमिट छाप छोड़िस।
         प्रसिद्ध गायक झाडूराम देवांगन ल लक्ष्मीबाई हा ममा कहय काबर कि झाडुराम के गाॅंव बासिंग (दुर्ग) लक्ष्मीबाई के ननिहाल गाॅंव आय। लक्ष्मीबाई ल पिता के संगे संग ममा झाडूराम देवांगन ले घलो मार्गदर्शन मिलत रहय। 
         गिरौदपुरी धाम के मंच मा समाज हर लक्ष्मीबाई ल स्वर्ण पदक ले सम्मानित करिन। सरकार ओला अनचिनहार करिस। लक्ष्मीबाई अपन उपेक्षा ल देख हाॅंसत एकठन टिप्पणी करय:-

"रंग रुप म राजा मोहे, चटक मटक दारी, 
भाव भजन म साधू मोहे, पंडित करौं बिचारी।"

वो कहत रहय - सबके अपन अपन युग होथे, जइसे बेरा साॅंझ होके चले जाते, फेर काम रह जाथे। काम के कीमत सदा होथे। परचार करे ले थोरकन हलचल कलाकार मचा सकथे। परचार ले भला सच्चा सम्मान कहाॅं मिलही।

 लक्ष्मीबाई सत्ता के रवईया सोचके एकठन गीत अपन हिरदय के झलकत दरद ले गावय:-

     " सोना तो बाजय नहीं, कांच पीतल झन्नाय।
       साधू तो बोलते नहीं, मूरख रहे चिल्लाय।।
     धरे हॅंव ध्यान तुम्हारा मैं रघुवर"...........

तइहा बेरा मंच गायन गीत-गोविंद क्षेत्र म नारी जात ल समाजिक निंदा के सामना करे ल परय। गवईया-बजईया ल समाज हर बहेलिया, चटरहा के उपमा देवय। पंडवानी गायन ले जुड़े के बाद लक्ष्मीबाई के बिहाव दाई-ददा बर चिंता के विषय बनगे रहिच। फेर समय के का ओकर मेरा सबके ईलाज हे। दयाराम जी ल एक घरजिया दामांद मिल जथे। ओकर नाम राजिव नयन रहित। दाढ़ीधारी के नाम ले जाने जाय। मंच म झुमका अउ मंजीरा ल बजावत पंडवानी दल ल सम्हालय। 

1950 मा हबीब तनवीर के 'आगरा बाजार', 'चरणदास चोर' नाटक मंच के चरचा पूरा भारत म चलत रहिस। जेन हर आघू चलके सन् 1959 म "नया थियेटर" बनके स्थापित होय रहिस। छत्तीसगढ़ के कलाकार दिल्ली के मंच - नया थियेटर म जाय बर कुलकत रहय। हबीब तनवीर छत्तीसगढ़ के अनेक कलाकार मनला अपन मंच- नया थियेटर म ले जाय बर एक दल तइयार करे रहिस जेमा श्रीमती लक्ष्मीबाई बंजारे के नाम घलो सम्मिलित रहिस। फेर ओही समय लक्ष्मीबाई ल कैंसर बिमारी हर घेर लिस। लक्ष्मीबाई के कला देश-विदेश के मंच म अपन  पंडवानी विधा के छिप नइ छोड़ सकिस।  लक्ष्मीबाई स्वस्थ होके अपन राज म ही पंडवानी के जयकार लगाइस। जेला देख-सुन नवा नवा महिला कलाकार के जन्म होइस।

           कला संगीत के पचास बछर बाद छत्तीसगढ़ लोक कला महोत्सव के विराट मंच म गुरु परंपरा के लोक कलाकार मनके सम्मान होइस। जेमा पंडवानी विधा के गुरु के रुप म श्रीमती लक्ष्मीबाई के सम्मान करिन। लक्ष्मीबाई ये सम्मान पाके मन ल  संतुष्ट करलिच। राज्य अलंकरण खातिर सरकार सम्मान नइ करिन त का होगे। जब कलाकार मन ओला पंडवानी के पुरखिन दाई कहिथे तब लक्ष्मीबाई ल अइसे लगथे जइसे ओला भारत रत्न मिलगे। 
पंडवानी के पुरखिन दाई ल शत शत नमन जोहार हे।


✍️मिलन मलरिहा 
नगर पंचायत मल्हार बिलासपुर छत्तीसगढ़ 


बुधवार, 22 जनवरी 2025

सतनाम पोथी - डाॅ. जे.आर.सोनी




 छत्तीसगढ़ शासन, संस्कृति विभाग के सहियोग ले प्रकाशित "सतनाम पोथी" लेखक-डाॅ.जे.आर. सोनी

स्थायी पता- डी-95, गुरघासीदास कालोनी, न्यू राजेन्द्र नगर रायपुर छत्तीसगढ़। जन्मभूमि- ग्राम टिकारी, तहसील मस्तूरी, जिला बिलासपुर (छ.ग.)


#सतनाम_पोथी (585 पृष्ट)

अनुक्रम:-


गद्य खण्ड प्रथम:-

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१. गुरु घासीदास जी का जीवन इतिहास 

२. गुरु घासीदास जी की अमर कथाऍं

३. सतनाम धर्म में जैतखाम का एतिहासिक महत्व 

४. ऐतिहासिक परिवेश 

५. अमृतवाणी।


पद्य खण्ड द्वितीय:- (दोहा, चौपाई छन्दों में- 44 अध्याय)

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१. गुरु स्तुति

२. नर नारी का संग्राम 

३. जगत धारी

४. सतखोजन दास

५. संतन दास

६. अमृत दास

७.दयालदास के विवाह 

८. मेदनीदास का विवाह

९. मेदनीदास (परिवार) भटगांव छोड़ने का विचार 

१०. महंगूदास का भटगांव में अवतार सन्१७८७-१७३१

११. गिरौधपुरी - महंगूदास जी का बाल चरित्र 

१२. मेदनी दास जी के गिरौध में संत व्यवहार महिमा

१३. गृहस्थ आश्रम में महंगू दास एवं माता अमरौतिन चरित्र कथा 

१४. मेदनी दास पत्नी- मायावती अंतिम चरित्र कथा 

१५. अंग स्वर

१६. सत पुरुष के दर्शन महंगूदास ऑंगन

१७. माता अमरौतिन जी का स्वप्न के द्वारा प्रसाद खाना 

१८. जननी द्वारा विधिव्रत पूजा 

१९. गुरु दर्शन भेंट

२०. महंगूदास जी के आगमन पर संत जी के दर्शन गाय बछड़ा के खोज में 

२१. मानव के मानवता 

२२. सत्य अहिंसा 

२३. सत आचरण 

२४. आत्मज्ञान 

२५.अतिथि सत्कार 

२६.कर्म, कर्तव्य, वक्त

२७. महंगूदास पिता का उपदेश 

२८. बिना आगी पानी सेवन

२९. गुरु घासीदास जी के नगर में सात दोहरा हंडा फॅंसकर निकला 

३०. बालक चरित्र कथा-गिरौदपुरी धाम

३१. पिता-पुत्र चरित्र कथा 

३२. गुरु घासीदास जी ने फसल चोरों से शपथ लेकर क्षमा प्रदान कर, बंधन को छोडना 

३३. गुरु घासी के सतनाम प्रकासा महिमा जन जन में चर्चा 

३४. जन्म भवन में बैठकर बाबा द्वारा सुबह-शाम सत्संग 

३५. मनकू दास बाबा जी के बंधन दास पुत्र का अवतार 

३६. गुरु अमरदास जी के बिदाई

३७. अमर गुफा के तपस्वीयों (सप्त ऋषियों में चर्चा)

३८. शयन समाधि पूरा करने के बाद अनिश्चितकालीन तक समाधि सफुरा माता जी का।

३९. बाबा जी का प्रथम तपस्या स्थल 

४०. बाबा जी का दूसरी बार तपस्या प्रारंभ 

४१. जन्म भवन में कन्या सहोद्रा का पिता का संदेश पुछना 

४२. तीर्थ वासियों का स्वागत 

४३. झलहा और केशो कन्या का संबोधन 

४४. चौकीदार के रुप में सदोपदेश 

४५. सत्पुरुष सतनाम साहेब के दरबार चरित कथा 

४६. सत के परीक्षा 

४७. सर्वप्रथम गुरु दर्शन-कऊवा ताल के तीन किसानों द्वारा 

४८. बड़े भाई मनकू दास जी द्वारा स्वागत 

४९. भवन द्वारा पर कन्या सहोद्रा कुमारी द्वारा पिता जी का स्वागत 

५०. पुरी के संग-सखाओं द्वारा गुरु महिमा 

५१. बछिया को जीवन दान

५२. गुरु घासीदास द्वारा शयन समाधि से सफुरा माता को उठाना 

५३. कन्या सहोद्रा कुमारी को आशीर्वाद, वरदान 

५४. छाता पहाड़ दर्शन 

५५. धुनि मंदिर औरा-धौरा छाॅंव दर्शन 

५६. गुरु बालक दास अवतार 

५७. धर्म ध्वजा 

५८. कन्या सहोद्रा कुमारी विवाह हेतु चर्चा विचार 

५९. रणवीर सिंह के कन्या हरण कर लें जाने पर सफुरा माता द्वारा रक्षा 

६०. कवर्धा जिला चौथी रावटी भंवरादा में 

६१. पाॅंचवी रावटी डोंगरगढ़ (राजनांदगांव जिला)

६२. नैन में किरण प्रदान 

६३. डोंगरगढ़ बम्लेश्वरी माई में बलिप्रथा बंद

६४. छठवां रावटी - कांकेर 

६५. सातवां रावटी - बस्तर जिला चिराई पहुर स्थल 

६६. गुरु आगर दास जन्म १८०३

६७. तेलासी पुरी बीच बस्ती -गुरु अमरदास समाधि लगाकर बैठ गये

६८. सात दिन पश्चात, तेलासी में जनजागरण 

६९. अमरदास के व्याह की तैयारी (अमरदास जी का चमत्कार कथा)

७०. २५ वर्ष के अवस्था में गुरु अमर दास ने गृह आश्रम का त्याग किया।

७१. गुरु बालकदास जी की वैरागी साधु द्वारा नौ गाॅंव को दान भेंट में मिला (चरित कथा)

७२. गुरु घासी द्वारा अपने उत्तराधिकारी वंशज को संत उपदेश देना।

७३. गुरु घासी ने जगत के संत जनों के हीत लिए सतनाम धर्म का प्रतिक भेष बनाया।

७४. गुरु बालक दास बाबा जी के अंगरक्षक २४ घण्टे उनके साथ रहते।

७५. गिरौध तपो भूमि धुनि मंदिर व भण्डारपुरी के गुरु गद्दी भवन में कलश चढ़ाकर पताका लहराना।

७६. गुरु अमरदास एवं प्रताप पुरहिन माता जी का सुहागरात पूर्व संवाद वार्ता।

७७. राजमहंत अधारदास सोनवानी (ग्राम हरिन भट्ठा मालगुजार) चरित्र कथा।


गद्य खण्ड तृतीय:-

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१. संत उदादास जी

२. संत जगजीवन दास जी

३. सतगुरु वाणी 

४. सतनाम संप्रदाय की वेशभूषा 

५. सतनामी संतो की वाणी 

६. साध सतनामी 

७. संदर्भ ग्रंथ सूची।

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. संकलन : मिलन मलरिहा 

मल्हार, मस्तूरी, बिलासपुर छ.ग.।

रविवार, 1 सितंबर 2024

शनिचरी बजार मॅं, देखे रहेवॅं तोला ओ


 #गीत....


शनिचरी बजार मॅं, देखे रहेवॅं तोला ओ

अरपा के पार मॅं, देखे रहेवॅं तोला ओ

छुम छुम पैरी छनके, 

एतीओती कनिहा मटके

लागे उॅंमर सोला ओ........


लकर धकर तैंहा आये, रेंगत रेंगत तैं टकराये

हलर हलर बेनी झुलके, हिरदे मॅं वो बान चलाये

टीपटाॅप झूमका वाली, 

ओंठ तोरे लाली गुलाबी

दागे बम के गोला ओ........


नज़र तोरे एतिओती, कभू देखले मोरो कोती

मैं तो हॅंव दिवाना तोरे, सुध तो लेले एहू कोती

तैं आये बहार लाये

भीड़ तैं हजार लाये

हपेच डारे मोला ओ......


एक दिन मैं अगोरत रहेवॅं, तोला मैं टकोरत रहेवॅं 

आये तैंहा झोला लेके, तोला मैं निटोरत रहेवॅं

खांध धरे देख परेंव मैं , आने संग भेंट परेवॅं मैं 

हाथ ओकर तोर कनिहां मॅं, 

अइसे कइसे भेंट परेवॅं मैं 

आन आगे तोर जिनगानी

थमगे मोर मया कहानी

आगी बरगे चोला ओ........

शनिचरी बजार मॅं देखे रहेवॅं तोला ओ

अरपा के पार मॅं, देखे रहेवॅं तोला ओ.....


✍️ मिलन मलरिहा 

मल्हार बिलासपुर छग 


2012 सीएमडी कालेज बिलासपुर मॅं अंग्रेज़ी साहित्य के छात्र रहेंव....पर लिखत रहेंव छत्तीसगढ़ी 😀🙏 

मैं ये गीत ल GoreLal Barman जी बर लिखें रहेंव... बर्मन जी भारी व्यस्तता के कारण या नापसंद के कारण नकार दिस लगथे?., फेर रचनाकार ल अपन रचना सुग्घर ही लगथे.......

मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

देवनगरी मल्हार

 देवनगरी मल्हार बिलासपुर जिले में 21. 55' अक्षांश 82.20' देशांतर पूर्व में स्थित है। ताम्र पाषाण काल से लेकर मध्य पाषाण काल तक का इतिहास को उल्लेखित करती ताम्रपत्र , सातवाहन शासकों की गजांकित मुद्राएं एंव शरभपुरीय राजवंश की कलचुरी शासक के अनेक ताम्रपत्र से  शरभपुर (मल्हार नगर) का नाम उल्लेखित है। 425 से 655 ई. के बीच शरभपुरी राजवंश का कार्यकाल छत्तीसगढ़ के इतिहास का स्वर्ण युग माना गया। जिसमें धार्मिक तथा ललित कला के पांच केंद्र विकसित हुए- 1.मल्हार(शरभपुर), 2.ताला, 3. क्रोध, 4. सिरपुर, 5.राजिम।

इन पांच केन्द्रों में देवनगरी मल्हार की धरा में चतुर्भुज विष्णु की अद्वितीय प्रतिमा का प्राप्त होना मल्हार नगर को  देव नगरों में श्रेष्ठतम स्थान देता है। 1167 ई. में कलचुरी राजा जाज्वल्यदेव द्वितीय के कार्यकाल में सोमराज द्वारा मल्हार नगर द्वार पर स्थित पातालेश्वर मंदिर का निर्माण का उल्लेख ताम्रपत्रों से उजागर हुआ जो मल्हार-नगर की महिमा को उल्लेखित करता है।  सातवाहन काल, शरभपुरी राजवंश, कलचुरी राजवंश का शिलालेख  प्रमाण, मल्हार नगर (शरभपुर) को मात्र ऐतिहासिक नगर उल्लेखित करता है किंतु छत्तीसगढ़ में ही नहीं पूरे भारत में नगर माता डिडिनेश्वरी (पार्वती) की अद्वितीय, अद्भुत प्रतिमा मल्हार नगर को श्रेष्ठतम नगर में स्थापित करने के साथ ही ऐतिहासिक, धार्मिक नगर के रूप में चिह्नित करती है। 

मल्हार नगर के प्रथम द्वार पर पातालेश्वर महादेव का वास और नगर के मध्य में नगर माता डिडिनेश्वरी (पार्वती देवी) का वास होना अद्भुत संयोग है।

छत्तीसगढ़ की मेला- मड़ाई,  देश- प्रदेश में विख्यात है जिसमें मल्हार नगर में 15 दिवसीय मेला,  प्रदेश में सबसे अलग पहचान रखता है। ग्राम लोकप्रियता, सामाजिक गतिविधियों, आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति के कारण और आवागमन मार्गों का संचालन गतिविधियों से कस्बा, नगर में तब्दील हो जाती है। उसी प्रकार हर्षोल्लास पर्व मड़ई का रुप धारण करता है और विस्तृत होकर मेला में निरुपित हो जाती है।

मल्हार नगर वासी, पूर्वजों के कथाओं में मलार-मड़ई  (मल्हार-मड़ई) का उल्लेख मिलता है। जिसमें ग्राम देवी डिडिनेश्वरी (डिड़िनदाई), पातालेश्वर महादेव के स्थापित होने की खुशी में नगर वासियों के द्वारा उत्सव मनाया गया। हर्षोल्लास का आनंद मड़ई (मेला का छोटा रुप) में तब्दील हुआ छत्तीसगढ़ के अन्य जगहों में मड़ई, गंगाईन देवी के विवाह पर्व के हर्ष और उल्लास पर आधारित होती है । मड़ई का प्रारंभ गंगाईन देवी की पूजा से होती है परंतु मल्हार नगर की मडंई छत्तीसगढ़ में अनोखी मड़ई  के लिए प्रसिद्ध था। यहां गंगाईं देवी के स्थान पर पातालेश्वर महादेव एवं पार्वती डिडिनेश्वरी देवी (ग्राम माता) के पूजा अर्चना से प्रत्येक वर्ष मड़ई उत्सव आयोजित होती थी। जिसे मलार-मड़ई के नाम से जाना जाता था। खाल्हे-राज बुजुर्गों के कथा-कहानियों  में "चला जाबो मलार-मड़ई" का उल्लेख मिलता रहा। 

मलार- मड़ई  में धार्मिक रीति रिवाज के साथ सामाजिक कार्यों की शुरुआत  आसपास के 20-30 ग्राम के लोग करते थे। खेती-किसानी के बाद लोगों में मलार- मड़ई का इंतजार रहता था क्योंकि वर्ष में एक बार ही कपड़े, बर्तन, गहने एवं आवश्यक वस्तुओं की खरीदी करते थे। आवागमन के साधनों की कमी के कारण रिश्ते-नातों से मुलाकात,  नव वर-वधुओं के विवाह की चर्चा भी इसी मड़ई में  किया जाता था। मड़ई पूजा में आसपास के ग्राम प्रमुख, गौटिया, बड़े किसान, बुजुर्ग सम्मिलित होते। बुजुर्ग दादा-दादी मड़ई जाने से पहले घर से निकलते समय अपने पुत्र- पुत्रियों को छड़ी (लौठी) से माप लेते थे ताकि उनके लिए योग्य वर- बंधुओं का चयन लंबाई मापकर किया जा सके। इस प्रकार वर् वधुओं को एक दुसरे को देखना-परखना, पहचानना, मित्रता करना जरुरी नही था। आसपास के गांव मलार-मड़ई में ही धार्मिक, सामाजिक कार्य हेतु ग्राम माता डिडिनेश्वरी (डिड़िनदाई) व भोलेबाबा के आशीर्वाद पाकर ही सम्पन्न कराते थे। समय बदलता गया मलार, मल्हार में और मड़ई मेला में परिवर्तित हो गया।


मल्हार 6 आगर 6 कोरी तरिया ( 126 तालाब) होने से तालाबों की नगरी के नाम से  छत्तीसगढ़ में रतनपुर एवं मल्हार प्रसिद्ध है। मल्हार नगर को धार्मिक एवं ललित कला के क्षेत्र में जो स्थान मिला उसमें नगर ग्राम देवी, माता डिडिनेश्वरी की विशिष्ट मूर्ति, कलाकृति पातालेश्वर एवं देउर मंदिर की ही देन है।

जिस प्रकार एक परिवार को माता-पिता, आशीर्वाद और  प्रेम से शराबोर करते है ठीक उसी प्रकार नगर मल्हार में द्वार पर पातालेश्वर महादेव, देउर मंदिर नगर पिता का दायित्व के साथ खड़ा है और नगर मध्य में माता डिडिनेश्वरी (पार्वती देवी) विराजमान है। ऐसी देवनगरी मेरी मातृभूमि है जिसे मेरा वंदन है! वंदन है! वंदन है!


//छत्तीसगढ़ी गीत//


गांव के आघु भोला हे जिहाँ लगथे मेला रे

गढ़ के खाल्हे खइया हे, तीर मं कनकन कुआँ हे

नईया खाल्हे हावय, डिड़िन दाई के छाँव

आबे भईया घुमे ल मलारे मोर गाॅंव............


माटी माटी सोना हे, धनहा हमर भुईयां हे

लीलागर नदियाँ के कोरा, चनौरी सुनसुनियाँ हे

कोरी कोरी तरिया सुग्घर साजे हमर ठाँव    

आबे भईया घुमे ल..........................


तईहा के गोठ कहत हे, सोना इहाँ बरसे हे

हांडी-गुण्डी खड़बड़ हे, किस्सा कहानी अड़बड़ हे

राजा रहिस शरभपुरिया, प्रसंन्नमात जेकर नाॅंव 

आबे भईया घुमे ल..........................

कवि- मिलन मलरिहा 

मल्हार बिलासपुर (छ.ग.)