बुधवार, 22 जनवरी 2025

सतनाम पोथी - डाॅ. जे.आर.सोनी




 छत्तीसगढ़ शासन, संस्कृति विभाग के सहियोग ले प्रकाशित "सतनाम पोथी" लेखक-डाॅ.जे.आर. सोनी

स्थायी पता- डी-95, गुरघासीदास कालोनी, न्यू राजेन्द्र नगर रायपुर छत्तीसगढ़। जन्मभूमि- ग्राम टिकारी, तहसील मस्तूरी, जिला बिलासपुर (छ.ग.)


#सतनाम_पोथी (585 पृष्ट)

अनुक्रम:-


गद्य खण्ड प्रथम:-

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१. गुरु घासीदास जी का जीवन इतिहास 

२. गुरु घासीदास जी की अमर कथाऍं

३. सतनाम धर्म में जैतखाम का एतिहासिक महत्व 

४. ऐतिहासिक परिवेश 

५. अमृतवाणी।


पद्य खण्ड द्वितीय:- (दोहा, चौपाई छन्दों में- 44 अध्याय)

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१. गुरु स्तुति

२. नर नारी का संग्राम 

३. जगत धारी

४. सतखोजन दास

५. संतन दास

६. अमृत दास

७.दयालदास के विवाह 

८. मेदनीदास का विवाह

९. मेदनीदास (परिवार) भटगांव छोड़ने का विचार 

१०. महंगूदास का भटगांव में अवतार सन्१७८७-१७३१

११. गिरौधपुरी - महंगूदास जी का बाल चरित्र 

१२. मेदनी दास जी के गिरौध में संत व्यवहार महिमा

१३. गृहस्थ आश्रम में महंगू दास एवं माता अमरौतिन चरित्र कथा 

१४. मेदनी दास पत्नी- मायावती अंतिम चरित्र कथा 

१५. अंग स्वर

१६. सत पुरुष के दर्शन महंगूदास ऑंगन

१७. माता अमरौतिन जी का स्वप्न के द्वारा प्रसाद खाना 

१८. जननी द्वारा विधिव्रत पूजा 

१९. गुरु दर्शन भेंट

२०. महंगूदास जी के आगमन पर संत जी के दर्शन गाय बछड़ा के खोज में 

२१. मानव के मानवता 

२२. सत्य अहिंसा 

२३. सत आचरण 

२४. आत्मज्ञान 

२५.अतिथि सत्कार 

२६.कर्म, कर्तव्य, वक्त

२७. महंगूदास पिता का उपदेश 

२८. बिना आगी पानी सेवन

२९. गुरु घासीदास जी के नगर में सात दोहरा हंडा फॅंसकर निकला 

३०. बालक चरित्र कथा-गिरौदपुरी धाम

३१. पिता-पुत्र चरित्र कथा 

३२. गुरु घासीदास जी ने फसल चोरों से शपथ लेकर क्षमा प्रदान कर, बंधन को छोडना 

३३. गुरु घासी के सतनाम प्रकासा महिमा जन जन में चर्चा 

३४. जन्म भवन में बैठकर बाबा द्वारा सुबह-शाम सत्संग 

३५. मनकू दास बाबा जी के बंधन दास पुत्र का अवतार 

३६. गुरु अमरदास जी के बिदाई

३७. अमर गुफा के तपस्वीयों (सप्त ऋषियों में चर्चा)

३८. शयन समाधि पूरा करने के बाद अनिश्चितकालीन तक समाधि सफुरा माता जी का।

३९. बाबा जी का प्रथम तपस्या स्थल 

४०. बाबा जी का दूसरी बार तपस्या प्रारंभ 

४१. जन्म भवन में कन्या सहोद्रा का पिता का संदेश पुछना 

४२. तीर्थ वासियों का स्वागत 

४३. झलहा और केशो कन्या का संबोधन 

४४. चौकीदार के रुप में सदोपदेश 

४५. सत्पुरुष सतनाम साहेब के दरबार चरित कथा 

४६. सत के परीक्षा 

४७. सर्वप्रथम गुरु दर्शन-कऊवा ताल के तीन किसानों द्वारा 

४८. बड़े भाई मनकू दास जी द्वारा स्वागत 

४९. भवन द्वारा पर कन्या सहोद्रा कुमारी द्वारा पिता जी का स्वागत 

५०. पुरी के संग-सखाओं द्वारा गुरु महिमा 

५१. बछिया को जीवन दान

५२. गुरु घासीदास द्वारा शयन समाधि से सफुरा माता को उठाना 

५३. कन्या सहोद्रा कुमारी को आशीर्वाद, वरदान 

५४. छाता पहाड़ दर्शन 

५५. धुनि मंदिर औरा-धौरा छाॅंव दर्शन 

५६. गुरु बालक दास अवतार 

५७. धर्म ध्वजा 

५८. कन्या सहोद्रा कुमारी विवाह हेतु चर्चा विचार 

५९. रणवीर सिंह के कन्या हरण कर लें जाने पर सफुरा माता द्वारा रक्षा 

६०. कवर्धा जिला चौथी रावटी भंवरादा में 

६१. पाॅंचवी रावटी डोंगरगढ़ (राजनांदगांव जिला)

६२. नैन में किरण प्रदान 

६३. डोंगरगढ़ बम्लेश्वरी माई में बलिप्रथा बंद

६४. छठवां रावटी - कांकेर 

६५. सातवां रावटी - बस्तर जिला चिराई पहुर स्थल 

६६. गुरु आगर दास जन्म १८०३

६७. तेलासी पुरी बीच बस्ती -गुरु अमरदास समाधि लगाकर बैठ गये

६८. सात दिन पश्चात, तेलासी में जनजागरण 

६९. अमरदास के व्याह की तैयारी (अमरदास जी का चमत्कार कथा)

७०. २५ वर्ष के अवस्था में गुरु अमर दास ने गृह आश्रम का त्याग किया।

७१. गुरु बालकदास जी की वैरागी साधु द्वारा नौ गाॅंव को दान भेंट में मिला (चरित कथा)

७२. गुरु घासी द्वारा अपने उत्तराधिकारी वंशज को संत उपदेश देना।

७३. गुरु घासी ने जगत के संत जनों के हीत लिए सतनाम धर्म का प्रतिक भेष बनाया।

७४. गुरु बालक दास बाबा जी के अंगरक्षक २४ घण्टे उनके साथ रहते।

७५. गिरौध तपो भूमि धुनि मंदिर व भण्डारपुरी के गुरु गद्दी भवन में कलश चढ़ाकर पताका लहराना।

७६. गुरु अमरदास एवं प्रताप पुरहिन माता जी का सुहागरात पूर्व संवाद वार्ता।

७७. राजमहंत अधारदास सोनवानी (ग्राम हरिन भट्ठा मालगुजार) चरित्र कथा।


गद्य खण्ड तृतीय:-

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१. संत उदादास जी

२. संत जगजीवन दास जी

३. सतगुरु वाणी 

४. सतनाम संप्रदाय की वेशभूषा 

५. सतनामी संतो की वाणी 

६. साध सतनामी 

७. संदर्भ ग्रंथ सूची।

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. संकलन : मिलन मलरिहा 

मल्हार, मस्तूरी, बिलासपुर छ.ग.।

रविवार, 1 सितंबर 2024

शनिचरी बजार मॅं, देखे रहेवॅं तोला ओ


 #गीत....


शनिचरी बजार मॅं, देखे रहेवॅं तोला ओ

अरपा के पार मॅं, देखे रहेवॅं तोला ओ

छुम छुम पैरी छनके, 

एतीओती कनिहा मटके

लागे उॅंमर सोला ओ........


लकर धकर तैंहा आये, रेंगत रेंगत तैं टकराये

हलर हलर बेनी झुलके, हिरदे मॅं वो बान चलाये

टीपटाॅप झूमका वाली, 

ओंठ तोरे लाली गुलाबी

दागे बम के गोला ओ........


नज़र तोरे एतिओती, कभू देखले मोरो कोती

मैं तो हॅंव दिवाना तोरे, सुध तो लेले एहू कोती

तैं आये बहार लाये

भीड़ तैं हजार लाये

हपेच डारे मोला ओ......


एक दिन मैं अगोरत रहेवॅं, तोला मैं टकोरत रहेवॅं 

आये तैंहा झोला लेके, तोला मैं निटोरत रहेवॅं

खांध धरे देख परेंव मैं , आने संग भेंट परेवॅं मैं 

हाथ ओकर तोर कनिहां मॅं, 

अइसे कइसे भेंट परेवॅं मैं 

आन आगे तोर जिनगानी

थमगे मोर मया कहानी

आगी बरगे चोला ओ........

शनिचरी बजार मॅं देखे रहेवॅं तोला ओ

अरपा के पार मॅं, देखे रहेवॅं तोला ओ.....


✍️ मिलन मलरिहा 

मल्हार बिलासपुर छग 


2012 सीएमडी कालेज बिलासपुर मॅं अंग्रेज़ी साहित्य के छात्र रहेंव....पर लिखत रहेंव छत्तीसगढ़ी 😀🙏 

मैं ये गीत ल GoreLal Barman जी बर लिखें रहेंव... बर्मन जी भारी व्यस्तता के कारण या नापसंद के कारण नकार दिस लगथे?., फेर रचनाकार ल अपन रचना सुग्घर ही लगथे.......

मंगलवार, 16 अप्रैल 2024

देवनगरी मल्हार

 देवनगरी मल्हार बिलासपुर जिले में 21. 55' अक्षांश 82.20' देशांतर पूर्व में स्थित है। ताम्र पाषाण काल से लेकर मध्य पाषाण काल तक का इतिहास को उल्लेखित करती ताम्रपत्र , सातवाहन शासकों की गजांकित मुद्राएं एंव शरभपुरीय राजवंश की कलचुरी शासक के अनेक ताम्रपत्र से  शरभपुर (मल्हार नगर) का नाम उल्लेखित है। 425 से 655 ई. के बीच शरभपुरी राजवंश का कार्यकाल छत्तीसगढ़ के इतिहास का स्वर्ण युग माना गया। जिसमें धार्मिक तथा ललित कला के पांच केंद्र विकसित हुए- 1.मल्हार(शरभपुर), 2.ताला, 3. क्रोध, 4. सिरपुर, 5.राजिम।

इन पांच केन्द्रों में देवनगरी मल्हार की धरा में चतुर्भुज विष्णु की अद्वितीय प्रतिमा का प्राप्त होना मल्हार नगर को  देव नगरों में श्रेष्ठतम स्थान देता है। 1167 ई. में कलचुरी राजा जाज्वल्यदेव द्वितीय के कार्यकाल में सोमराज द्वारा मल्हार नगर द्वार पर स्थित पातालेश्वर मंदिर का निर्माण का उल्लेख ताम्रपत्रों से उजागर हुआ जो मल्हार-नगर की महिमा को उल्लेखित करता है।  सातवाहन काल, शरभपुरी राजवंश, कलचुरी राजवंश का शिलालेख  प्रमाण, मल्हार नगर (शरभपुर) को मात्र ऐतिहासिक नगर उल्लेखित करता है किंतु छत्तीसगढ़ में ही नहीं पूरे भारत में नगर माता डिडिनेश्वरी (पार्वती) की अद्वितीय, अद्भुत प्रतिमा मल्हार नगर को श्रेष्ठतम नगर में स्थापित करने के साथ ही ऐतिहासिक, धार्मिक नगर के रूप में चिह्नित करती है। 

मल्हार नगर के प्रथम द्वार पर पातालेश्वर महादेव का वास और नगर के मध्य में नगर माता डिडिनेश्वरी (पार्वती देवी) का वास होना अद्भुत संयोग है।

छत्तीसगढ़ की मेला- मड़ाई,  देश- प्रदेश में विख्यात है जिसमें मल्हार नगर में 15 दिवसीय मेला,  प्रदेश में सबसे अलग पहचान रखता है। ग्राम लोकप्रियता, सामाजिक गतिविधियों, आवश्यक वस्तुओं की प्राप्ति के कारण और आवागमन मार्गों का संचालन गतिविधियों से कस्बा, नगर में तब्दील हो जाती है। उसी प्रकार हर्षोल्लास पर्व मड़ई का रुप धारण करता है और विस्तृत होकर मेला में निरुपित हो जाती है।

मल्हार नगर वासी, पूर्वजों के कथाओं में मलार-मड़ई  (मल्हार-मड़ई) का उल्लेख मिलता है। जिसमें ग्राम देवी डिडिनेश्वरी (डिड़िनदाई), पातालेश्वर महादेव के स्थापित होने की खुशी में नगर वासियों के द्वारा उत्सव मनाया गया। हर्षोल्लास का आनंद मड़ई (मेला का छोटा रुप) में तब्दील हुआ छत्तीसगढ़ के अन्य जगहों में मड़ई, गंगाईन देवी के विवाह पर्व के हर्ष और उल्लास पर आधारित होती है । मड़ई का प्रारंभ गंगाईन देवी की पूजा से होती है परंतु मल्हार नगर की मडंई छत्तीसगढ़ में अनोखी मड़ई  के लिए प्रसिद्ध था। यहां गंगाईं देवी के स्थान पर पातालेश्वर महादेव एवं पार्वती डिडिनेश्वरी देवी (ग्राम माता) के पूजा अर्चना से प्रत्येक वर्ष मड़ई उत्सव आयोजित होती थी। जिसे मलार-मड़ई के नाम से जाना जाता था। खाल्हे-राज बुजुर्गों के कथा-कहानियों  में "चला जाबो मलार-मड़ई" का उल्लेख मिलता रहा। 

मलार- मड़ई  में धार्मिक रीति रिवाज के साथ सामाजिक कार्यों की शुरुआत  आसपास के 20-30 ग्राम के लोग करते थे। खेती-किसानी के बाद लोगों में मलार- मड़ई का इंतजार रहता था क्योंकि वर्ष में एक बार ही कपड़े, बर्तन, गहने एवं आवश्यक वस्तुओं की खरीदी करते थे। आवागमन के साधनों की कमी के कारण रिश्ते-नातों से मुलाकात,  नव वर-वधुओं के विवाह की चर्चा भी इसी मड़ई में  किया जाता था। मड़ई पूजा में आसपास के ग्राम प्रमुख, गौटिया, बड़े किसान, बुजुर्ग सम्मिलित होते। बुजुर्ग दादा-दादी मड़ई जाने से पहले घर से निकलते समय अपने पुत्र- पुत्रियों को छड़ी (लौठी) से माप लेते थे ताकि उनके लिए योग्य वर- बंधुओं का चयन लंबाई मापकर किया जा सके। इस प्रकार वर् वधुओं को एक दुसरे को देखना-परखना, पहचानना, मित्रता करना जरुरी नही था। आसपास के गांव मलार-मड़ई में ही धार्मिक, सामाजिक कार्य हेतु ग्राम माता डिडिनेश्वरी (डिड़िनदाई) व भोलेबाबा के आशीर्वाद पाकर ही सम्पन्न कराते थे। समय बदलता गया मलार, मल्हार में और मड़ई मेला में परिवर्तित हो गया।


मल्हार 6 आगर 6 कोरी तरिया ( 126 तालाब) होने से तालाबों की नगरी के नाम से  छत्तीसगढ़ में रतनपुर एवं मल्हार प्रसिद्ध है। मल्हार नगर को धार्मिक एवं ललित कला के क्षेत्र में जो स्थान मिला उसमें नगर ग्राम देवी, माता डिडिनेश्वरी की विशिष्ट मूर्ति, कलाकृति पातालेश्वर एवं देउर मंदिर की ही देन है।

जिस प्रकार एक परिवार को माता-पिता, आशीर्वाद और  प्रेम से शराबोर करते है ठीक उसी प्रकार नगर मल्हार में द्वार पर पातालेश्वर महादेव, देउर मंदिर नगर पिता का दायित्व के साथ खड़ा है और नगर मध्य में माता डिडिनेश्वरी (पार्वती देवी) विराजमान है। ऐसी देवनगरी मेरी मातृभूमि है जिसे मेरा वंदन है! वंदन है! वंदन है!


//छत्तीसगढ़ी गीत//


गांव के आघु भोला हे जिहाँ लगथे मेला रे

गढ़ के खाल्हे खइया हे, तीर मं कनकन कुआँ हे

नईया खाल्हे हावय, डिड़िन दाई के छाँव

आबे भईया घुमे ल मलारे मोर गाॅंव............


माटी माटी सोना हे, धनहा हमर भुईयां हे

लीलागर नदियाँ के कोरा, चनौरी सुनसुनियाँ हे

कोरी कोरी तरिया सुग्घर साजे हमर ठाँव    

आबे भईया घुमे ल..........................


तईहा के गोठ कहत हे, सोना इहाँ बरसे हे

हांडी-गुण्डी खड़बड़ हे, किस्सा कहानी अड़बड़ हे

राजा रहिस शरभपुरिया, प्रसंन्नमात जेकर नाॅंव 

आबे भईया घुमे ल..........................

कवि- मिलन मलरिहा 

मल्हार बिलासपुर (छ.ग.)